न जाने क्यों उसने खड़ा कर दिया इस मोड पर,
बाहर है तेज आंधियां और भीतर घना अँधेरा है।
लड़ रहे हैं हम अपने ही खून से जिसके लिए,
सोचा है कभी हमने वो न तेरा है और न मेरा है।
आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है।
आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।
इन महलों और दौलत को ले जायेंगी ये आधियाँ,
गर मुहब्बत है दिल में तो सारा जहाँ ही तेरा है।
बाहर है तेज आंधियां और भीतर घना अँधेरा है।
लड़ रहे हैं हम अपने ही खून से जिसके लिए,
सोचा है कभी हमने वो न तेरा है और न मेरा है।
आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है।
आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।
इन महलों और दौलत को ले जायेंगी ये आधियाँ,
गर मुहब्बत है दिल में तो सारा जहाँ ही तेरा है।
13 टिप्पणियां:
बहुत गंभीर ग़ज़ल !
सुन्दर अभिव्यक्ति !
आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।
bhawnapradhaan
"इन महलों और दौलत को ले जायेंगी ये आधियाँ,
गर मुहब्बत है दिल में तो सारा जहाँ ही तेरा है। "
बेहतरीन!
सादर
बहुत सुन्दर पोस्ट
भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर और भावप्रणव गजल!
भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!
आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है
बहुत अच्छी गज़ल
आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है।
बहुत खूबसूरत सोच!
मार्मिक गजल ....
आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।
बहुत उम्दा!!
जिरह और जेहाद से अलग दुनिया को देखने/दिखानी की कोशिश कामयाब हो ...
सुन्दर भाव ...
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
marmik...dil ko chhuti hui...:)
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