आंधियां चल रहीं थी कशमकश की,
हम खड़े खड़े तय न कर सके मंजिलें।
एक एक कर गुजर गए सब अपने ,
हम इन्तजार में देखते रहे काफिले।
अपने से कोई सपना भी न मिला सका।
चलते चलते ख़त्म हो गए ये सिलसिले।
इन्तजार कहाँ तक करें कुछ भी पाने का?
बीच में ही ले उड़े मेरे सपनों को दिल जले।
आज भी आँखें खोजती है कुछ अपनों को,
जिन्हें ले गए अनचाहे वक़्त के जलजले।
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हम खड़े खड़े तय न कर सके मंजिलें।
एक एक कर गुजर गए सब अपने ,
हम इन्तजार में देखते रहे काफिले।
अपने से कोई सपना भी न मिला सका।
चलते चलते ख़त्म हो गए ये सिलसिले।
इन्तजार कहाँ तक करें कुछ भी पाने का?
बीच में ही ले उड़े मेरे सपनों को दिल जले।
आज भी आँखें खोजती है कुछ अपनों को,
जिन्हें ले गए अनचाहे वक़्त के जलजले।
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