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बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नववर्ष तुम्हें शत शत शुभ हो!

नववर्ष तुम्हें शत शत शुभ हो!
नव प्रात अरुणिमा से बिखरे
खुशियाँ और खुशहाली।
प्रफुल्लित मन से
रखो पग नव दिवस में।
जगमगाते सूर्य की किरणें
उल्लास भरें जीवन में।
हर प्रात तुम्हारी
हो होली सी,
हर संध्या दीवाली बन चमके।
वंदना के स्वर औ'
अर्चना की उमंगों से
जीवन में ईश कृपा
सबको इच्छित वर दे।
फिर भी
नव दिवस पर
कुछ नए संकल्प
मन में भी लीजिये।
इस मनुज जीवन से
कुछ परहित भी कीजिये।
एक पग ऐसे चलें
हाथ में हाथ लेकर
साथ सब उनके रहें
जिनने कुछ खोया है - अभी अभी।
नियति के थपेड़ों से
बच नहीं सकता कोई
फिर भी
उन्हें शांति, धैर्य औ' साहस दे
दें उन्हें साथ होने का अहसास।
हताशा से निकालें
सहारा दें।
हो सकता है कि
हमारा ये प्रयास
जाने-अनजाने ही सही
शक्ति से भर दे उन्हें
एक नयी ऊर्जा दे
नयी दिशा मिलने पर
नया जीवन पाकर
वे
फिर से जी उठेंगे
औ' हम सब का
प्रयास सार्थक हो।
तो नव वर्ष भी सार्थक होगा।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

सिर्फ आज जिया है!

विदा गुजरे साल को
सब दे रहे हैं।
गुजर रहे हैं
साल-दर-साल
सिर्फ रात औ' दिन के चक्र में
न कल देखा,
न देखेंगे।
सिर्फ आज औ' आज
अपना है।
और इसी आज को जी सकते हैं।
कुछ बदला है तो
वक़्त के हिसाब से
कलैंडर और तारीख बदलती है।
तस्वीरे पुरानी और धुंधली होती हैं।
उतारकर नयी लग जाती हैं।
तस्वीरों में
बदलते चेहरे के अक्स
गुजरे सालों का हिसाब देते हैं।
बाद में -
क्या खोया - क्या पाया
बस यही
हिसाब शेष रह जाता है।
बस इसी तरह से
एक और साल गुजर जाता है.

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

जीवन की संध्या इतनी दुरूह क्यों?

बालकनी में बैठे दादा,
नीचे रेंग रहे लोगों को
देख रहे हैं
हसरत से,
ये अब तकाजा
हर इन्सान का ,
आज उनका तो
कल होगा हमारा।
वक्त के साथ कितना बदलें
अब पहले से तो
दिन ही नहीं हैं,
सब से सब होते हैं बेगाने।
पहले तो
हमारे गाँवों में
पार्क नहीं थे,
थीं चौपालें,
उन पर बैठे
खटिया डाले.
सब मिलकर हुक्का गुडगुडाते,
सबका सुख - दुःख
कह - सुन जाते,
सबका दुःख सबका होता था,
सबके सुख भी सबके होते,
कभी कभी
गाँव के खेतों के किनारे
पुआल जलाये
हाथ सेंकते
भून रहे है
चने , मटर के बूंट ,
भून आग पर
होला खाकर
होते मगन सब
आज तो कितने
यही न जानें,
कैसे खेत और कैसी खेती?
बच्चों ने छोड़ा
घर औ' गाँव
हमको भी
बेघर कर दिया,
महानगरों के
ऊँचे घरों में
जहाँ न छत अपनी,
न जमीं अपनी।
याद घरों की आती है,
बड़े बड़े आँगन के बीच में
तुलसी चौरे की वो बाती,
कुंएं का मीठा पानी
घड़ों और कलशों में होता,
गुड के डली और
मट्ठा पीकर
जीवन तो हमने भी जिया था,
पर अब
बस यादों ही यादों
के साए में
आँख कभी भर आती है,
जेहन में बसी
गाँव की सोंधी माटी
बहुत रुला रुला जाती है।

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

मानवाधिकार दिवस - किसके लिए ?

कौन से मानव है?
जो हकदार है
इन मानवाधिकारों के।
उससे पहले की मानव को अधिकार मिले
हर्ता पहले आ जाते हैं,
अपने साम-दाम-दण्ड-भेद
सब अपना कर
अपने नाम कर लेते हैं।
अगर सही नहीं
तो जाकर देखो
कितने निर्दोष
सड़ रहे हैं जेलों में।
अपने घर में झांकें
या
पड़ोसियों के.
विक्षिप्त से
वे मौत का इंतजार कर रहे हैं।
वर्षों पहले हमने
उन्हें मृत - लापता करार दे दिया
उनके जीने की खबरें मिली
व्याकुल से घरवाले
ऊपर तक दौड़े,
इस आस में
दम तो अपने दर पर निकले,
पर कदम थक गए
कोई मानव न जागा
मानवाधिकारों की बात कौन कहे?
वे वही अन्तिम साँसें लेंगे
और पता नहीं
कौन सी गति
उनको मिल पाएगी।
क्योंकि वहां तक पहुँच
किसी की नहीं ।
जो बंद किए हैं
वे मानव ही नहीं हैं।
गले मिलकर
हमदर्दी दिखा जाते हैं
मानवाधिकार की दुहाई देनेवाले
मानवाधिकारों की समाधि
बना जाते हैं।
औ'
हम चुपचाप उस अन्याय
अधर्म पर
बस आँसू बहाया करते हैं
उनके कष्टों का अहसास
करते करते
चाँद पंक्तियों के सहारे
नारे लगाया करते हैं।
पर हमारी आवाज
किसी बंद कमरे की तरह
दीवारों से टकरा कर
वापस हम तक आ जाती है,
और हमारे कानों में
पड़ कर
हमारी ही बेबसी का
अहसास दिला जाती है,
अहसास दिला जाती है.

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

विकलांगों को समर्पित ये प्रशस्ति!

शायद क्रूरता है
ये उनके भाग्य की,
मानव तो बनाया
किंतु पूर्णता नहीं दी ।
या दी भी तो
जानकर छीन ली।
पर
जीवन तो जीना है,
एक चुनौती मानकर
असंभव कुछ भी नहीं
सक्षम और सशक्त
आत्मविश्वास से होते हैं।
नहीं तो
पूर्ण कहे जाने भी
सडकों पर रोते हैं।
उनको ये आत्मविश्वास
कुछ अपने ही देते हैं।
अशक्त समझ कर
उन्हें और अपाहिज मत बनाओ
हौसला बढाओ
साधनों से करो सक्षम
इतिहास वे रच जायेंगे।
कितने विकलांग
सुर्ख़ियों में आते हैं
क्या यों ही
नहीं जन्मदाताओं ने उन्हें
जीना सिखाया है,
मित्रों ने उन्हें
हौसला दिया है,
औ'
समाज ने उन्हें सराहा है।
तब ही तो वे
अपने अधूरे अहसास को भुलाकर
हम कहीं से भी
कमतर नहीं है।
इस जज्बे के साथ
अपनी विकलांगता को चुनौती
मानकर
सहर्ष स्वीकार कर
हमेशा आगे बढे हैं।
उनके कदम कभी
पीछे नहीं
आगे की मंजिलें ख़ुद तय करेंगे।
हम तो बस
उनकी कामयाबी पर फख्र करेंगे
और उनकी हिम्मत को दाद देकर
एक मानव के प्रति
एक मानव होने का फर्ज अदा करेंगे.