नारी तू
लेकर नाता
अपने आंसुओं से
धरती पर
पैदा ही क्यों हुई ?
जब छोटी सी बच्ची
भर भर आँखें
क्यों रोती है ?
जोड़ कर
अपनी गुड़िया से
रिश्ता स्नेह का
विदा किया तो
फूट फूट कर रोई।
उम्र बढ़ी तो
हर पल ये अहसास
उसको जाना है ,
वह परायी है ,
ये उसका घर नहीं ,
बार बार उसको रुला जाता है।
कभी ख़्याल आता
जन्म से लेकर
इस दिन तक
जिनके साये में जिया
प्यार जिनसे लिया
उन्हें छोड़ कर जाऊं कैसे ?
बस आँखे भीग भीग जाती हैं।
डोली में रखते ही कदम
वो देहरी परायी हो गयी
वो माटी , घर , माँ बाप सभी
छोड़ कर चली परदेश
सारे रिश्ते पराये हो गए
जन्म के रिश्ते ,
छूटे पीछे ,
टूटे घरोंदे ,
बिखरी गुड़ियाँ
जब जब सोचा
भर भर आयीं उसकी आँखें।
दूसरे घर में भी
उसको कहाँ मिला अहसास
वो उसका अपना ही घर है ,
उसे अपना बनाने में
जीवन भर खुद को
कुर्बान कर दिया
उस क़ुरबानी के बाद भी
हाथ तो सिर्फ
आँखों की नमी ही आई।
बेटी पाकर गोद में
उसमें खुद को पा लिया ,
वही उसको पाला पोसा
फिर अपनी तरह।
उसको भेजा पराये घर
फिर फूट फूट कर रोई।
शायद यही नियति है तेरी