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रविवार, 15 दिसंबर 2013

ख़ामोशी !

ख़ामोशी 
कुछ नहीं कहती है ,
मुखर नहीं होती ,
फिर भी 
किसी की ख़ामोशी 
कितने अर्थ लिए 
खुद एक कहानी 
अपने में समेटे रहती है। 
किसी की खोमोशी 
बढ़ावा देती है ,
अत्याचारों और ज्यादतियों को 
गूंगी जान 
बेजान समझ 
सब फायदा उठाते हैं। 
कोई ख़ामोशी 
मौन स्वीकृति भी है ,
बस जगह और हालात 
उसको विवश कर 
उसके ओठों को 
सिल  देते हैं।
उसके दर्द को कोई 
समझ नहीं पाता है। 
 एक ख़ामोशी 
 दिल पर लगे 
गहरे जख्मों के दर्द को 
चुपचाप ही पीती 
बस उसकी आँखें 
बयां करती उसके दर्द को। 
किसी ख़ामोशी में 
चेहरे  पर बिखरे भाव 
उद्वेलित मन का ताव 
सब कुछ कह जाते हैं। 
बस पढने वाला चाहिए 
ख़ामोशी नाम एक है 
उसके पीछे के अर्थ 
बस गढ़ने वाला चाहिए।