हर अश्क ने लिखी एक अलग इबारत है,
सोमवार, 1 जुलाई 2024
क्या कहिए ?
हर अश्क ने लिखी एक अलग इबारत है,
रविवार, 9 जून 2024
वक्त की पतंग
वक्त की पतंग!
ये वक्त
पतंग सा
ऊँचे आकाश में,
चढ़ता ही जा रहा हैं।
डोर तो हाथ में है,
फिर भी
फिसलती ही जा रही है,
कोई मायने नहीं,
कि चर्खी कितनी भरी है?
जब पतंग पर काबू नहीं,
पता नहीं डोर कब छूट जाये?
पकड़ कभी मजबूत नहीं होती,
बस एक दिन तो छूट जाना है।
समय आना तो एक बहाना है।
गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
उनका ये जीवन!
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
आज के रावण !
शनिवार, 9 सितंबर 2023
तलाश!
तलाश!
आज बहुत दिन बाद
निकली हूँ खोज में
कहीं देखे हैं किसी ने,
मेरे शब्द खो गये,
दूसरे शब्दों में
हिरा गये कहीं।
खोजा मन के हर कोने में,
बाहर भी खोजा गहराई से,
सिर्फ वही नहीं
मेरे भाव भी गुम है
मेरे अंर्त से।
रचूँ क्या?
लिखूँ क्या?
कलम भटक रही है,
खोज में उनके
कोई तो बता दे कि
रचना क्या है?
इतनी विकृति दिख रही है,
विद्रूपता छाई है
जीवन के हर प्रहर में।
कहीं बिखरे बिखरे से घर हैं,
कहीं घर रह गये है,
ईंट गारे के मकान।
एक छत के नीचे
सब गूँगे जी रहे है।
बस आवाजों को तरसते कान
मंद रोशनी के बचे हैं।
@रेखा श्रीवास्तव
शुक्रवार, 25 अगस्त 2023
नई इबारतें !
नई इबारतें
लिखते हैं हम ,
नयी कलम से ,
और खोजते हैं
दास्तान पुरानी।
जंग लगी कलमों की
स्याही भी सूखने लगी हैं ।
कुछ नया , नये जमाने का
लेकर फिर से
दस्तूर तो निभा लें हम।
साथ
तो चलना है,
जमाने के कदम दर कदम ,
कुछ नये दस्तूर तो बना लें हैं।
लिखी कुछअजब से कहानियाँ
लिखी और लिख कर मिटा दिया,
उंगली उठा रहे थे लोग,
ठगे
से रह गये हम।
बहुत मुश्किल है,
इस नये जमाने का चलन,
तुम लिखो कुछ भी
हम नाम अपने करा लेंगे ।
@रेखा श्रीवास्तव
शुक्रवार, 14 जुलाई 2023
तानों का विष!
इन तानों का विष कितना जहरीला है?
पीकर मनुज मरता नहीं घुल जाता है।
रोज रोज दें बस एक खुराक बहुत है,
एक दिन वह नीला जरूर पड़ जाता है।
वह शिव नहीं जो गरल कंठ में रोक सके
जीवन भर नीलकंठ नहीं बन पाता है।
मरता नहीं है जीवन भर घुट घुट कर
मौत का मंजर देख देख कर जाता है।
कैसे हो तुम जग वालों जीने भी नहीं देते,
मरने के लिए भी आजाद नहीं हो पाता है।