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सोमवार, 1 जुलाई 2024

क्या कहिए ?

 

हर अश्क ने लिखी एक अलग इबारत है, 
इन अश्कों की जुबानी भी क्या कहिए ?
 
कुछ में बसी है कसक अनदेखे जख्मों की, 
इस अहसास में छलके तो क्या कहिए ?

ज़ख्मों की कसक हो अपनी जरूरी तो नहीं,
दर्द किसी का,अश्क हों अपने क्या कहिए?

कुछ पन्ने अतीत के खुलते ही छलक गए ,
क्या कहाँ चुभा निकले आँसू क्या कहिए?

कहीं बैठ अकेले अपनों से दूरी की यादें,
छलक गयीं बरबस आँखें क्या कहिए?

कुछ बिछड़ गये कह न पाये दिल की अपने,
उन यादों में छलके अश्कों का क्या कहिए?

रेखा श्रीवास्तव

रविवार, 9 जून 2024

वक्त की पतंग

 वक्त की पतंग!


ये वक्त

पतंग सा

ऊँचे आकाश में,

चढ़ता ही जा रहा हैं।

डोर तो हाथ में है,

फिर भी

फिसलती ही जा रही है,

कोई मायने नहीं,

कि चर्खी कितनी भरी है?

जब पतंग पर काबू नहीं,

पता नहीं डोर कब छूट जाये?

पकड़ कभी मजबूत नहीं होती,

बस एक दिन तो छूट जाना है।

समय आना तो एक बहाना है।


गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

उनका ये जीवन!

 

उनका ये जीवन!

उनके झुर्रीदार चेहरे पर 
मुस्कान कभी जब देखी है ,
वो पल बन गये 
जिंदगी के अनमोल पल ।
उन आँखों की चमक में
छलक रही थी ममता ,
वो आलिंगन काँपते हाथों का 
दे गया वो सुकून 
जो जिंदगी भर खोजते रहें
कहीं और नहीं मिलता ।
ये बुजुर्ग चाहते है 
कुछ पल जो हम सिर्फ 
उनको दे सकें 
सुन सकें उनकी यादों का सिलसिला ।
वे कुछ पल जी लें 
उन लोगों की यादों के साथ ,
जो चले गये लेकिन 
जिनके साक्षी हमारे बचपन थे ।
कौन उनको साथ देता है,
हमारे पास वक्त नहीं,
हमारे बच्चों को कोई रुचि नहीं,
तब ही तो वृद्धाश्रम के साथी बहुत अपने होते है।
साथ हँसते है,
साथ आँखे भर लेते हैं,
काँधे पर हाथ धर सांत्वना भी देते है।
शायद यही जीवन है अब।


बुधवार, 24 अप्रैल 2024

आज के रावण !

 

आज के रावण !

युगों पहले 
रावण ने एक पाप किया था,
पराई नारी पर 
प्रतिशोध के लिए
हरण किया था। 
फिर उसके  प्रायश्चित के लिए
पूरे परिवार का संताप भी जिया था।
फिर भी 
आज उसके पुतले को फूँक कर
उसके कर्मों की सजा का
प्रतिफल दुहराया जा रहा है ।
जबकि 
सीता के सतीत्व पर
कभी बुरी  निगाह भी नहीं डाली ।
फिर भी  आज तक 
हम उसका पुतला जलाते है ।
आज कितने उससे पतित रावणों को देख रहे हैं,
चारों तरफ 
वे नाली के कीड़ों की तरह बिलबिला रहे हैं ।
उन्हें हम छू भी नहीं सकते हैं,
जलाना और पकड़ना तो दूर की बात ।
उन्हें सिर्फ मादा चाहिए
वो उम्र में 
माँ, बहन , बेटी या फिर पोती सी ही क्यों न हो ?
वे हवस के मारे ,
मारने के काबिल है ।
कुचल दो ऐसी मानसिकता को 
किसी साँप के फन की तरह ।
लेकिन उसे मानसिकता का क्या होगा ?
जो दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है ,
उसके अंत की भी सोचो ,
कोई तो राह खोजो।

शनिवार, 9 सितंबर 2023

तलाश!

 तलाश!


आज बहुत दिन बाद

निकली हूँ खोज में

कहीं देखे हैं किसी ने,

मेरे शब्द खो गये,

दूसरे शब्दों में

हिरा गये कहीं।

खोजा मन के हर कोने में,

बाहर भी खोजा गहराई से,

सिर्फ वही नहीं

मेरे भाव भी गुम है

मेरे अंर्त से।

रचूँ क्या?

लिखूँ क्या?

कलम भटक रही है,

खोज में उनके

कोई तो बता दे कि 

रचना क्या है?

इतनी विकृति दिख रही है,

विद्रूपता छाई है

जीवन के हर प्रहर में।

कहीं बिखरे बिखरे से घर हैं,

कहीं घर रह गये है,

ईंट गारे के मकान।

एक छत के नीचे 

सब गूँगे जी रहे है।

बस आवाजों को तरसते कान

मंद रोशनी के बचे हैं।


@रेखा श्रीवास्तव

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

नई इबारतें !

 

नई इबारतें

लिखते हैं  हम ,

नयी कलम से ,

और खोजते हैं

दास्तान पुरानी। 

जंग लगी कलमों की

स्याही भी सूखने लगी हैं ।

कुछ नया , नये जमाने का

लेकर फिर से 

दस्तूर तो निभा लें हम।

साथ तो चलना है,

जमाने के कदम दर कदम ,

कुछ नये दस्तूर तो बना लें हैं।

लिखी कुछअजब से कहानियाँ 

लिखी और लिख कर मिटा दिया,

उंगली उठा रहे थे लोग,

ठगे से रह गये हम।

बहुत मुश्किल है,

इस नये जमाने का चलन,

तुम लिखो कुछ भी

हम नाम अपने करा लेंगे ।

 

@रेखा श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

तानों का विष!

 

        इन तानों का विष कितना जहरीला है?

      पीकर मनुज मरता नहीं घुल जाता है। 

 

       रोज रोज दें बस एक खुराक बहुत है,

       एक दिन वह नीला जरूर पड़ जाता है।

 

       वह शिव नहीं जो गरल कंठ में रोक सके

      जीवन भर नीलकंठ नहीं बन पाता है। 

 

       मरता नहीं है जीवन भर घुट घुट कर 

       मौत का मंजर देख देख कर जाता है। 

     

       कैसे हो तुम जग वालों जीने भी नहीं देते,

       मरने के लिए भी आजाद नहीं हो पाता है।