दीवार
तो एक ही होती है,
चाहे वह
ईंट और गारे की हो
या फिर
अनदेखी दिल के बीच।
ईंट गारे की दीवार फिर भी
लांघ कर जा सकते हें,
जब चाहे तोड़ कर फिर
एक हो सकते हें।
लेकिन जहाँ द्वार से द्वार
मिल रहे हों,
फासले सिर्फ और सिर्फ
दिलों के बीच दीवार बन गए हों,
वहाँ
उसको फिर तोड़ नहीं सकते,
दो दिल फिर मिल नहीं सकते।
इसी लिए
बोलो खूब बोलो
लेकिन
तौल कर बोलो
कि दिल के बीच दीवारें तो न बनें।
वे चाहे घर में हों,
देश में हों,
जाति में हों,
वर्ग में हों ,
या फिर आदमी और आदमी के बीच में हों।
प्रिय बोलो,
मधुर बोलो,
इसमें कुछ नहीं लगता,
बस कुछ मिलता ही है,
प्यार से बोलो,
प्यार मिलेगा।
दो बोलों से पूरा संसार मिलेगा।
रविवार, 29 जनवरी 2012
सोमवार, 16 जनवरी 2012
आशा से .....!Aruna
ये दिया
जलाये मकान हूँ,
स्नेह भरा था जीवन का,
ये जीवन दीप भी
अब तक कब तक
जल सकता है ?
अब
आओ सहयोगो तुम,
ये दीप नई पीढ़ी का है।
ये मानवता की माटी से बना,
दया, करुणा की बात है,
विश्व प्रेम का तेल भरा है,
बस इसमें तेल ही भरना है।
ये यूं ही जलता रहेगा,
बस इसके आगे तुम हाथ रखो
अधर्मी अपमान, जेहाद या संत की
तूफ़ान और तूफ़ान से बचाव होगा।
विश्वास यही है
इस दीपक को
जनरेशन दर जनरेशन जलाने वाले
आते रहे हैं और आते रहेंगे।
सोमवार, 9 जनवरी 2012
तन्हां नहीं होता!
जो जीता किताबों में
वो कभी तन्हा नहीं होता।
किताबों की इबारत
होती है जुबान पर,
किरदारों में खोजते हें खुद को,
फिर करके मंथन
ऐसा नहीं ऐसा?
खुद ही देते हें दिशाएं,
लिखने पर किसी के
प्रश्न उठाते हें,
और फिर
खुद भी उत्तर भी सुझा देते हें।
तौलते हैं तराजू में
कीमत आँका करते हें।
खुद ही देकर
उन्हें कीमत खरीदा और बेचा करते हें।
जीते हें उन्हीं किरदारों में
उनके जुमले बदला करते हें।
कितने संवाद लिखते और मिटाते रहते हैं
किताबों में जो जीते हैं
वो कभी तन्हा नहीं होते हैं।
शनिवार, 7 जनवरी 2012
एक शिकायत !
शिकायत करूँ क्या बहुत अपनों से,
गम में हमारे वे शरीक ही कहाँ थे?
खोजती रही आँखें कई मर्तबा दर पर,
मायूस ही रही तुम खड़े ही कहाँ थे?
तुमसे अच्छे तो दुश्मन थे ए दोस्त
जहाँ होना था तुमको वे वहाँ खड़े थे।
हाथ मेरे कंधे पे जो होता तुम्हारा
ज़ख्म हमारे इतने गहरे न होते .
एक तो ज़ख्म किस्मत ने दिया था,
दूसरे उसको बढ़ाने वाले तुम यहाँ थे।
सोमवार, 2 जनवरी 2012
हर दिन नव वर्ष !
नव वर्ष की रात की चलती सर्द हवाएं ,
सर्द न कर सकीं उनके फन और हौसलों को,
लोग लवरेज जोश भरे इरादों से नाचे रात भर ,
उनके हाथ चलते रहे अपने अपने साजों पर ।
दूसरों की खुशियों में शामिल हों या न हो,
वे साजों पर अंगुलियाँ रात भर नचाते रहे ।
लेकिन उनकी उँगलियों के नाचने से जुड़ी थीं,
कुछ लोगों की रोटी, दवा , फीस औ' किराया।
वे बस इसी मजबूरी में नववर्ष का स्वागत,
अपने लाडलों को गले से लगाकर न कर सके।
फिर सुबह की सर्द हवाएं और तेज बौछारों में
जब उपहार लिए लौटे तो गले से लगा लिया ।
यही नववर्ष है जब चेहरों पर मुस्कान खिले,
दिन कोई भी हो खुशियों, उम्मीदों का दीप जले।
नव वर्ष २०१2 !
स्वागत नव वर्ष का ह्रदय से करते है हम,
हर किरण दिवस की मन का श्रृंगार करे।
जो नहीं मिला हमें विगत वर्ष उसे भूलकर अब ,
कुछ नया करें औ' पायें हम ये सपना साकार करें।
अति, अन्याय, अनाचार के प्रति हो कठोर
बन कर सजग प्रहरी इसका प्रतिकार करें।
जो सद्गुण पाए जीवन में अब तक हमने
उनको भरकर सब लोगों में नित प्रसार करें।
जो लिखें कलम से दे कुछ सन्देश विश्व को,
कुछ बदल सकें तो ईश्वर का आभार करें।
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