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शनिवार, 3 मई 2014

हाइकू !


कुलदीपक
आज भी जरूरी हैं
कन्या मार दो।
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चाहे न डालें
गले में गंगाजल
चाहिए वही।
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कहाँ तक न
खोजा  कुलदीपक
अंत आ गया
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आवाज ही दी
बेटी तो आँखें भर
निहार रही।
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पत्थर पूजे
माँगा तो बेटा ही था
बेटी हुई तो ?
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आंसूं निकले
शक्ल बेटी की देख
श्राद्ध न होगा।
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नाम बेटी का
लेना भी गुनाह था
आज रो पड़े।
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