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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

हाईकू

 निरंकुश वे 
छटपटाते हम 
हल कहाँ है?
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फांसी का फन्दा 
एक की गर्दन में 
बाकी को तो दें । 
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 गोद में कन्या 
दरवाजे बंद हैं 
जाए वो कहाँ? 
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घरेलू हिंसा 
हर घर में जिन्दा 
चीख सुनें तो .
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आधी आबादी 
आज भी आधी जिए 
पूरी  न होगी   .
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अहंकार है 
फिर विद्वता कहाँ? 
सोचो तो जरा.  
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 माथे चन्दन 
गले में धारे हार
पंडित बने .
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शनिवार, 3 नवंबर 2012

ईश्वर बनाम माँ !





माँ ओ मेरी माँ 
कल मैंने देखा 
एक सपना 
तब जाना कि 
तेरा ये रूप क्यों 
मुझे ईश्वर सा लगता है .
सपने में 
ईश्वर आये 
अपने वृहत स्वरूप में 
उनके उन रूपों में 
माँ तेरा भी चेहरा था ,
तुझे देख कर 
मैंने तब ईश्वर से ये पूछा 
मेरी माँ तुममें कैसे है ? 
वे बोले 
सृष्टि मैं करता हूँ ,
सृष्टि धरा पर 
ये माँ करती है ,
अपना अंश 
उसको देकर मैं 
माँ बनाया करता हूँ 
फिर वो आकर धरा पर 
जननी बन 
मेरा धर्म निभाती है ,
मैं आकर 
हर जीव को 
धरती पर पाल नहीं सकता हूँ 
अपने अंश रूप से 
तुम सब को 
पाला करता हूँ। 
वो जन्म देती है,
पालती है ,
संस्कार देकर 
एक बेहतर मानव 
बनाती है .
इसी लिए धरती पर 
मैं उसमें ही रहता हूँ 
वो मुझेमें दिखलाई देती है। 
तब जाना माँ 
कि तू ऐसी क्यों हैं?
माँ 
तू ही  मेरी 
जननी , पालक , शिक्षक 
औ' ईश्वर रूप 
तुम्हें नमन करता हूँ। 
तुम्हें नमन करता हूँ।