कलम का एक लम्बा विराम और फिर उठ कर चलने का प्रवाह सब अपना ही मन है। कहीं बिंधी रही जिंदगी किसी काम में - फिर चल पड़ा सफर और साथ हम आपके हैं .
आज उतरते हुए गाड़ी से जो उनने देखा ,
कभी मीलों पैदल चलने से पड़े छालों की बात
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।
आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
एक ही वक़्त जिंदगी का मेरी ऐसा भी था ,
ऑफिस में की बोर्ड पर चलने वाली ये अंगुलियां ,
आँगन गोबर से लीपती थी यकीन नहीं करते।
जिंदगी में अपनी देखे हैं कैसे कैसे मंजर ,
इम्तिहान लेने को खड़े थे कुछ बहुत अपने ,
हारे नहीं हम जीत कर निकले वे यकीन नहीं करते।
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।
आज के इस रोशनी से जगमगाते हुए घर ,
कभी एक लालटेन में पढ़े हैं चार बच्चे घर में
बार बार कहने पर भी वे यकीन नहीं करते।
एक ही वक़्त जिंदगी का मेरी ऐसा भी था ,
आँगन गोबर से लीपती थी यकीन नहीं करते।
जिंदगी में अपनी देखे हैं कैसे कैसे मंजर ,