सजा दो चौखटें घर की,
रंगोली से द्वार सजाओ,
हर कोना घर का महके फूलों से,
मुडेरों पर दीप इतने सजाओ
रोशन हर दिशा हो जाये.
आज लक्ष्मी देख कर सजावट
बस इसी घर में बस जाएँ.
मुखिया घर के
नौकरों से कहते घूम रहे थे.
तभी खबर आई,
बहू ने मायके में बच्ची को जन्म दिया है,
समधी जी बोले - बधाई हो,
आपके घर लक्ष्मी जी पधारी हैं.
फ़ोन पर ही चिल्लाये - काहे की लक्ष्मी ?
ये तो लक्ष्मी जाने का रास्ता खुल गया.
अरे डिग्री बन कर आई है.
तुम्हें लक्ष्मी लग रही हो तो -
मय माँ के उसको वही रख लेना.
नाना अवाक् !
अरे मूर्ख !
अनदेखी लक्ष्मी का इतना भव्य स्वागत
द्वार तक फूलों के रास्ते बने हैं
जन्मी हुई लक्ष्मी का तिरस्कार क्यों?
खबर मिलते ही कन्या की
ये लटके हुए चेहरे लेकर
मातम सा माहौल बना क्यों?
वह गुण, बुद्धि स्वरूप में तो
बालक की तरह ही आई है,
वह चाहेगी वही जो तुम पर
बेटे को देने के लिए है
माँ के आँचल में दुबक कर
दूध ही तो पीना है उसे भी,
आते ही गिन्नियां तो नहीं मांगेगी तुमसे
उससे आने पर ये तल्खियाँ फिर क्यों?
बालक भी जन्मते ही इतना ही चाहेगा,
आते ही कहीं से लक्ष्मी का अम्बार
तुम्हें घर नहीं लग जायेगा.
फिर गिन्नियों की खनक
सुनाई देने लगती है क्यों?
देखोगे भो गिन्नी या फिर खोखले हो जाओगे
भविष्य के गर्भ में है
अभी से ये चिंता फिर क्यों ?
बड़े होते ही चल देंगे,
सुन कर अनसुना कर देंगे,
अवज्ञा कौन करेगा?
ये मालूम है तुमको,
कन्या देहलीज के भीतर भी देखेगी तुमको
बड़े होकर कष्टों को बांटेगी भी,
इस अबोध कन्या से बेरुखी फिर क्यों?
अब आँखें खोलो
अपनी दृष्टि जग पर डालो,
वंश की परंपरा का ढोल पीटना
अब बंद भी कर दो.
वह लक्ष्मी ही है स्वीकारो उसे.
सच के सामने जुबान खामोश है क्यों?