चिट्ठाजगत www.hamarivani.com

मंगलवार, 18 जून 2019

आह्वान !

जब जब बढ़े अधर्म धरा पर,
धैर्य धर संयत तो रहना होगा,
मन से स्मरण  कर शक्ति का,
              मन की दुर्बलताओं को हरना होगा।
             तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

वो शक्ति स्वरूपा दुर्गा हो ,
काली हो या विकराली हो,
चामुण्डा शक्ति बगलामुखी,
            तुम्हें निर्भयता मन में भरना होगा।
             तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

रावण , दुर्योधन से भी अधम ,
स्वर्ण मृग से घूमते मारीच सदा,
अस्तित्व मनुज का है खतरे में,
          नया व्यूह साहस का रचना होगा ।
           तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

वो फैले हर दिशा के मोड़ पर,
तांडव सा कर रहे हैं हिंसा का ,
युग युग से पुजती है धरणी पर,
           जग में निर्भय बन साँसें भरना होगा।
           तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

संकल्प उठाओ युवा शक्ति ,
तुम निर्बल नहीं सबल बनो,
हुंकार शक्ति जब भरती है ,
           युगों - युगों   तक उन्हें डरना होगा ।
           तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

तुम ही शक्ति , समर्पण हो तुम,
धैर्य , ममत्व और करूणा हो तुम,
समय भाँप लो  वैसा ही रूप धरो ।
        तुम्हें खड्गधारिणी भी बनना होगा ।
        तुम्हें आह्वान शक्ति का करना होगा ।

शुक्रवार, 14 जून 2019

उसकी कहानी !

जन्मी कल थी,
उतर गोद से माँ की,
नन्हें नन्हें कदमों से
अभी अभी चलना सीखा ।
अँगुली माँ की छोड़
अभी तक न चलना आया था ।
सुनती शोर दूर तो
दौड़ छिप जाती
माँ के आँचल में ,
अभी नहीं आया था,
आँगन पार करना भी ,
हाथ पकड़ कर बाबा का,
करती थी पार गली में ।
नहीं जानती कौन है अपना
कौन पराया मानुष में ।
उन दानव सम मानुष ने
हर लिया मुझे
और कर दिया टुकड़े टुकड़े ।
मिले नहीं
वो बिखरे बिखरे ।
कहाँ गये ?
खोजे तो कोई ,
मैं ऊपर बैठी बुला रही
 माँ बाबा को,
वो नीचे चीख चीख कर
 पुकार रहे हैं मुझको ।
बस इतने दिन जीने दिया दरिंदों ने
माँ कैसे समझाऊँ तुमको
मैं पीड़ा अपने तन मन की ।
शायद इतनी ही कहानी थी मेरे जीवन की ।