दिल के छालों की दवा
पैसों से नहीं आती।
मन में पसरा हो मातम तो
हंसी ओठों पर नहीं आती।
सब झूठे हैं दावे
खून खून की तरफ दौड़ता है,
पानी हो जाये तो
उसमें लहरें भी नहीं आतीं।
खून जम जाता है रगों में,
सर्द पड़ जाते हैं अहसास
फिर
दिल में कसक भी नहीं आती।
जब चल दिए जहाँ से
लाश तौल दो पैसों से
तो क्या?
आखिरी वक्त में अपनों से
एक बूँद पानी की भी
उनके नसीब में नहीं आती।
हम गैरहों तो क्या ?
वे अपने न सही
परायों के वीराने तो न रहें।
कभी तो झांक लें
सामने की बंद खिड़कियों में
जिनसे अब बाहर आती नहीं रोशनी ,
पता नहीं कौन सा गम
उसको खा रहा हो,
सिसकियाँ भी अब
गले से बाहर नहीं आतीं।
पैसे की होड़ में
रोबोट बना गया इंसान
न संवेदना , न दया और न ममता
सब ख़त्म हो चुकी है।
खबर तक नहीं लेते
गोद में खेलने वाले,
पैसे से ममता का मोल
चुकाने वाले
तुम्हें शर्म नहीं आती।
सब कुछ ब्योछावर किया
दो हांथों - दो आँखों ने
आज बंद होती वे आँखें
टूटती हुई साँसों की आवाज
गज भर के फासले पर
रहते हुए भी
तुमको सुनाई नहीं दी.
तुम्हें इनसे कोई भी
लगन या ममता नजर नहीं आई।
अब समेटो अपनी दुनियाँ
वे तो मिट ही चुकी हैं।
अब आगे क्या?
कुछ और भी होना है।
गुरुवार, 14 अप्रैल 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
संवेदनहीनता समाज की कडवी सच्चाई है धन लोलुपता ने इन्सान को मशीन और संगदिल बना दिया है .
खून पानी हो जाए तो उसमे लहरें भी नहीं आती ...
त्रासदी है सामाजिक जीवन की ...अक्सर लोग खून के रिश्तो से ही आहत होते हैं !
मार्मिक कविता..
संवेदनहीन होते रिश्तों के इस समाज में अब ऐसे नजारे ही दिखाई देंगे। - डॉ. रत्ना वर्मा
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
संवेदनाये सूखा खून बन गयी है
मार्मिक
आगे-आगे देखिए होता है क्या.
एक टिप्पणी भेजें