अपने हक में आये तेरे इस दर्द को ,
आहिस्ता-आहिस्ता पिया है मैंने।
जब न सहा गया तो भींच कर होंठों को ,
नाम लेकर तेरा हर पल जिया है मैंने।
किसने पूछा है कभी जिन्दगी में मुझसे ,
कौन से ज़ख्म पर कैसा पैबंद सिया है मैंने।
होंठों पर हंसी लेकर औ आँखों में नमी ,
दुनियाँ के कहने पर इम्तिहान दिया है मैंने।
दिख न जाए आँखों में तस्वीर तेरी,
भूल से भी तेरा नाम न लिया है मैंने।
अपने दर्द तो जी ही चुके हम अब तक ,
दोष भी तो कभी तुमको न दिया है मैंने।
आहिस्ता-आहिस्ता पिया है मैंने।
जब न सहा गया तो भींच कर होंठों को ,
नाम लेकर तेरा हर पल जिया है मैंने।
किसने पूछा है कभी जिन्दगी में मुझसे ,
कौन से ज़ख्म पर कैसा पैबंद सिया है मैंने।
होंठों पर हंसी लेकर औ आँखों में नमी ,
दुनियाँ के कहने पर इम्तिहान दिया है मैंने।
दिख न जाए आँखों में तस्वीर तेरी,
भूल से भी तेरा नाम न लिया है मैंने।
अपने दर्द तो जी ही चुके हम अब तक ,
दोष भी तो कभी तुमको न दिया है मैंने।
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