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सोमवार, 18 अप्रैल 2011

न तेरा है और न मेरा है।

जाने क्यों उसने इस मूड पर खड़ा कर दिया ,
बाहर तेज आंधियां हैं और अंदर घना अधेरा है

लड़कियाँ हैं हम अपने ही खून से जिसके लिए ,
खोजा है कभी हमने तेरा है और मेरा है ।
इसे खोला गया कर सब क्यों देखें ,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है

आसमां के नीचे ही गर धार्मिक है सार्वभौम की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहां का ही साझा बसेरा है

इन महलों और गाड़ियों को ले जायेंगी ये आधियां ,
गर मुहब्बत है दिल में तो सारा जहां ही तेरा है

13 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत गंभीर ग़ज़ल !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।
bhawnapradhaan

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"इन महलों और दौलत को ले जायेंगी ये आधियाँ,
गर मुहब्बत है दिल में तो सारा जहाँ ही तेरा है। "

बेहतरीन!

सादर

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट

भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावप्रणव गजल!
भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है

बहुत अच्छी गज़ल

मनोज कुमार ने कहा…

आँखें खोल कर सब देखते क्यों नहीं अब भी,
इस जिरह और जेहाद से अलग भी नया सवेरा है।
बहुत खूबसूरत सोच!

डॉ. रत्ना वर्मा ने कहा…

मार्मिक गजल ....

Udan Tashtari ने कहा…

आसमां के नीचे ही गर गुजरती है सुकून की रात
फिर तो जरूर ये सारे जहाँ का ही साझा बसेरा है।


बहुत उम्दा!!

वाणी गीत ने कहा…

जिरह और जेहाद से अलग दुनिया को देखने/दिखानी की कोशिश कामयाब हो ...
सुन्दर भाव ...

hamarivani ने कहा…

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

marmik...dil ko chhuti hui...:)