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सोमवार, 29 अगस्त 2022

रिश्तों की सिलन!

 रिश्तों में सिलन

जन्म से होती है,

तभी तो

सब मिलकर बनता है

परिवार परिधान।

सबका अलग अलग अस्तित्व

फिर भी जुड़े होते है ।

सारे अवयव

जुड़े होते है सिर्फ माँ से,

और माँ संतुलन बनाये

सबको धारे रहती है।

समय के साथ

आकार बढ़ता है फिर

अपने ही सामने 

जब टूटने लगती है वह सिलन,

फिर नहीं सिल पाती है

सिल भी ले तो

नहीं हो पाते हैं

सब एक साथ , एक आकार में।

खुद सुई तागा लिए

कभी इसको सुधारती है

और कभी उसको

लेकिन खुद दोषी बना दी जाती है

और एक किनारे बैठा दी जाती है।

कहीं कॉलर,

कहीं आस्तीन,

कहीं बाँधने वाला फीता,

शेष बचा भाग उड़ जाता है हवा में,

वो देखती रहती है बेबसी से,

उस सिलन की सूत्रधार ।

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

यह तो सच कहा आपने ....