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गुरुवार, 11 अगस्त 2011

मेरी कलम से !

मेरी कलम

मेरी सबसे बड़ी हमराज है।

कितनी प्यारी सी सहेली है,

बताऊं कैसे ?

इससे खास

शायद कोई नहीं,

ये जानती है

मेरे ग़मों और

मेरे सदमों को,

किन शब्दों में

उजागर करना है।

आंसुओं की स्याही

कहाँ गहरी औ'

कहाँ हल्की रखनी है।

टपकते हुए आंसुओं को

जज्ब  कर

कब कितनी शिद्दत से

उगलना है जहर

एक ऐसा जहर

जो खुद को ही

मार दे ,

दूसरे से मिले दर्द को

सह सके

औ' मन  से उन्हें

बुरा न कहे

मेरे जख्मों को

खुद ही

कागज पर उतार कर
मरहम बना देती है
और फिर
हल्का दिल लिए ,
मैं उसको हाथ में लिए
तकिये पर सर रखे
शांति से सो जाती हूँ.
मेरे सारे गम
उसने कागजों पर
उतार जो दिए थे
.

4 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

आपकी की कलम से बहुत ही अच्छी रचना रची है....

सदा ने कहा…

दूसरे से मिले दर्द को

सह सके

औ' man से उन्हें

बुरा न कहे

मेरे जख्मों को

खुद ही

कागज पर उतार कर
मरहम बना देती है
बहुत सुन्‍दता से हर शब्‍द को व्‍यक्‍त किया भावमय करती प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ. अब कलम भी तो अतीत की चीज बनती जा रही है.

प्रकाश जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना