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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

जीत का जश्न !

एक गरीब और विकलांग बच्चे की जीत का जश्न कुछ इस तरह मनाया हमने की आँखें तो भरी हीकुछ कलम भी कह उठी



राहों में बिछे
काँटों की चुभन
'
पैरों से रिसते लहू
से निकली
घावों की पीड़ा,
हौसलों की राह में
रोड़े बन जाती है?
नहीं
हौसले जमीन पर
कब चलने देते हैं,
यही तो
मन के पर बनकर
आकाश में उड़ान
भरते हुए
कहीं और ले जाते हैं
जहाँ पहुँच कर
छलक पड़ती हैं आँखें
अभावों के पत्थर
विरोध के स्वर
कटाक्षों के तीरों से
आहट अंतर्मन
मंजिल पर पहुँच कर
आखिर रो ही देता है
लेकिन ये आँसू
औरों को
रुला जाते हैं
फिर ढेरों
आशीष और
सर पर रखे हाथ
जीत का जश्न मनाते हैं

17 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

हौसले की राह में अवरोधों से निकल कर जो ख़ुशी मिलती है , वही सबसे बेहतर !

ashish ने कहा…

जीत का जज्बा और हौसला इन्सान को हर अवरोध पार करने में सहायक होते है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना!

मनोज कुमार ने कहा…

हौसला हो तो कुछ भी असंभव नहीं।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

agar haushla hai to jaan hai:)

Udan Tashtari ने कहा…

हौसला ही जीतता है अंततः....

vandana gupta ने कहा…

आपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
नयी-पुरानी हलचल

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अभावों के पत्थर
विरोध के स्वर
कटाक्षों के तीरों से
आहट अंतर्मन
मंजिल पर पहुँच कर
आखिर रो ही देता है।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ... जीत के बारे में थोड़ा विस्तार से बतातीं तो और अच्छा लगता ..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हौसले जमीन पर
कब चलने देते हैं,
यही तो
मन के पर बनकर
आकाश में उड़ान
भरते हुए
कहीं और ले जाते हैं।sachchi baat

विभूति" ने कहा…

bhut hi sarthak aur bhaavpur rachna...

विभूति" ने कहा…

bhut hi sarthak aur bhaavpur rachna...

mridula pradhan ने कहा…

bhawbheeni......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आशा का संचार करती हैं ऐसी रचनाएँ ..

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।
शुभकामनाएं

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति....
aakhir me hausle ki hi jeet hoti hai .

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

ant me chhupa sandesh khushi aur sukoon de gaya.

गीता पंडित ने कहा…

हौसले जमीन पर
कब चलने देते हैं,
यही तो
मन के पर बनकर
आकाश में उड़ान
भरते हुए
कहीं और ले जाते हैं |


सत्य और शिव...आभार...