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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

होली आई रे रंगीली!

होली आई रे रंगीली,
     उड़े मस्ती के रंग.....

जले मन का कलुष
होली की लपटों के संग,
गले मिले सब मानुष
भूले कल की वो जंग.

होली आई रे रंगीली
उड़े मस्ती के रंग....

चलो खेले रे होली
भीगे रंग में अंग-अंग,
गूंजे गीत फागुन के
बाजे ढोल औ' मृदंग.

होली आई रे रंगीली
उड़े मस्ती के रंग..

कहीं खेले लट्ठमार
कहीं रंगों की फुहार
निकले मन के गुबार
दिखी भंग की तरंग.

होली आई रे रंगीली 
उड़े मस्ती के रंग....

5 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

होली के अवसर पर सुन्दर रचना ।

rashmi ravija ने कहा…

आपकी कविता तो होली के सारे रंग समेटे हुए हैं...\ब्लॉग की साज सज्जा भी बहुत सुन्दर लग रही है...ढेरों शुभकामनाएं,होली की

बेनामी ने कहा…

होली "मंगल मिलन" की हार्दिक शुभकामनाएं

shikha varshney ने कहा…

wah hare ggulabi,nile ,pile sare rang hain....bhaut sundar.

Unknown ने कहा…

होली पर बहुत सुन्दर रचना