हर अश्क ने लिखी एक अलग इबारत है,
इन अश्कों की जुबानी भी क्या कहिए ?
कुछ में बसी है कसक अनदेखे जख्मों की,
इस अहसास में छलके तो क्या कहिए ?
ज़ख्मों की कसक हो अपनी जरूरी तो नहीं,
दर्द किसी का,अश्क हों अपने क्या कहिए?
कुछ पन्ने अतीत के खुलते ही छलक गए ,
क्या कहाँ चुभा निकले आँसू क्या कहिए?
कहीं बैठ अकेले अपनों से दूरी की यादें,
छलक गयीं बरबस आँखें क्या कहिए?
कुछ बिछड़ गये कह न पाये दिल की अपने,
उन यादों में छलके अश्कों का क्या कहिए?
रेखा श्रीवास्तव
5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर गनुक
सादर
यादों के बादल जब तब बरस जाते हैं
प्रीत की छतरी हम अक्सर घर भूल जाते हैं
बहुत सुन्दर
ज़ख्मों की कसक हो अपनी जरूरी तो नहीं,
दर्द किसी का,अश्क हों अपने क्या कहिए?
संवेदनशील हृदय अपने ही नहीं दूसरों को दर्द से भी दुखता है...
बहुत सटीक एवं लाजवाब सृजन ।
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