जीवन में
खुशियों का पैमाना
अपना अपना होता है ।
यह वक्त भी
तय करता है ,
और हालात भी ।
दुधमुँहे को छोड़
माँ काम पर जाती है ।
उस नन्हे की भूख
खोजती है अपनी माँ को ,
अचानक माँ को पाकर
जो खुशी उसे मिली
बयान नहीं उसका ।
तपती सड़क पर
रिक्शा खींचते हुए को
कहीं दिख जाये
जलधारा
उसकी आँखों की चमक
उसको मिल जाती
खींचने की नयी शक्ति
जो खुशी उसे मिली
बयान नहीं उसका ।
माँ का दुलारा / दुलारी
जब आते हैं
छुट्टियों में
चाहे वे कितने ही बड़े हों
जो खुशी माँ की होगी
बयान नहीं उसका ।
आफिस के ए सी चैंबर में
आराम से बैठे
जब पाते है अपना हिस्सा
कितना भी कमा रहे हों
इसके बिना बरकत कहाँ ?
उस मन की खुशी
बयान नहीं उसका ।
कहाँ तक बयान करें
ये खुशी के पल
बाजार में नहीं मिलते
खरीद कुछ भी लें
लेकिन ये
उपहार में नहीं मिलते ।
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