सुनो मुझे कल को जीना है
कोई चलेगा क्या कल में?
मत चलो कोई,
फिर भी मुझे वापस जीना है,
गुजरे हुए जीवन के उन प्यारे लम्हों को,
क्या गुजरा, क्या खोया, क्या पाया?
सब को फिर मिलकर जीना है।
बचपन की अठखेलियाँ
भाई-बहन के वह झगड़े,
शीशम पर पड़ा हुआ झूला
सखियों संग मिलकर
मुझे फिर से झूलना है।
खेल में कब घड़ी लगी थी,
जी भरता कब था?
बंद द्वार को खटका कर,
जब घर आते थे,
फिर वह डाँट का कसैला सा शरबत पीना है,
मुझे फिर कल को जीना है।
गले लग सखियों के फिर,
मिलकर गुट्टे और कड़क्को
फिर से खेल सकूँ
अब कौन कहाँ जीता है?
फिर एक बार सभी संग
उस युग में जाकर
मुझे फिर कल को जीना है ।
कहाँ सभी होते थे अपने,
रखते थे अधिकार सभी ,
डर सिर्फ घरवालों का ही नहीं,
पड़ोसी भी सब चाचा भाई हुआ करते थे,
अधिकार सभी अपना सा रखते थे ,
मुझे उन्हीं दिन में जाना है,
मुझे फिर कल को जीना है।
आज नहीं है कोई अपना सा
सब की नजरें स्वार्थ भरी हैं,
कब छोड़ चल देंगे ?
इस जहर को अब न पीना है
मुझे फिर कल को जीना है।
2 टिप्पणियां:
सच में बीते कल को दुबारा से जीने को मन तो करता हो।मन करता है कि उसे वैसे नहीं काश ऐसे किया होता।पर इसी चाह में आज भी हाथ से निकलकर कल बन जाता है।और चाह वहीं की वहीं...
बहुत सुन्दर
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