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शनिवार, 11 सितंबर 2021

आस लिए बैठे हैं !

 वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से ,

हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं ।


दौड़ नहीं पाये संग संग उसके तो पीछे रह गये ,

थाम कर बीते दिन पुराने कलैण्डर से लिए बैठे  हैं ।


पाँव थक गये थे दौड़ना सिखाते सिखाते उनको ,

आयेंगे वो पलट कर साथ ले जाने आस लिए बैठे हैं।


हमारी तो ये धरोहर है जीवन की सुनहरे पलों की ,

आये तो जलाकर चल दिये हम राख लिए बैठे हैं ।


-- रेखा

8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह, मार्मिक प्रस्तुति ।
सुनहरे पल भी जल जाते हैं ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना सोमवार. 13 सितंबर 2021 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 13.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

Meena Bhardwaj ने कहा…

वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से ,
हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं ।
अति सुन्दर ।

Sweta sinha ने कहा…

हमारी तो ये धरोहर है जीवन की सुनहरे पलों की ,
आये तो जलाकर चल दिये हम राख लिए बैठे हैं ।

अति सुंदर सृजन।
सादर।

Amrita Tanmay ने कहा…

सच! आस लिए ही सब बैठे हैं .. उम्दा नज़्म ।

Vocal Baba ने कहा…

अति प्रशंसनीय प्रस्तुति। बहुत खूब।

Sudha Devrani ने कहा…

दौड़ना इतना सिखाया कि दौड़े ही नहीं बल्कि भाग गये सिखखने वाले उनके लौटने की आस लिए बैठे हैं
बहुत ही उम्दा।