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रविवार, 15 दिसंबर 2013

ख़ामोशी !

ख़ामोशी 
कुछ नहीं कहती है ,
मुखर नहीं होती ,
फिर भी 
किसी की ख़ामोशी 
कितने अर्थ लिए 
खुद एक कहानी 
अपने में समेटे रहती है। 
किसी की खोमोशी 
बढ़ावा देती है ,
अत्याचारों और ज्यादतियों को 
गूंगी जान 
बेजान समझ 
सब फायदा उठाते हैं। 
कोई ख़ामोशी 
मौन स्वीकृति भी है ,
बस जगह और हालात 
उसको विवश कर 
उसके ओठों को 
सिल  देते हैं।
उसके दर्द को कोई 
समझ नहीं पाता है। 
 एक ख़ामोशी 
 दिल पर लगे 
गहरे जख्मों के दर्द को 
चुपचाप ही पीती 
बस उसकी आँखें 
बयां करती उसके दर्द को। 
किसी ख़ामोशी में 
चेहरे  पर बिखरे भाव 
उद्वेलित मन का ताव 
सब कुछ कह जाते हैं। 
बस पढने वाला चाहिए 
ख़ामोशी नाम एक है 
उसके पीछे के अर्थ 
बस गढ़ने वाला चाहिए।  

7 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ख़ामोशी सिर्फ शान्ति का आह्वान नहीं
मौन घी भी है आग में
किसी के ज़ख्मों से पलायन
ख़ामोशी के अपने अपने मायने हैं

बेनामी ने कहा…

SUNDAR BHAVNATMAK ABHIVYAKTI .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-12-13) को "आप का कनफ्यूजन" (चर्चा मंच : अंक-1463) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

कभी - कभी सच की खामोशी जानलेवा भी होती है .......

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सच कहा आपने. लेकिन खामोशी जितनी जल्दी मुखरित हो जाए उतना अच्छा.

Pallavi saxena ने कहा…

कुछ खामोशियाँ भी बोला करती है। सच कहा रश्मि दी ने...खामोशी सिर्फ शांति का आह्वान नहीं मौन घी भी है आग में इसलिए खामोशियाँ जितनी जल्दी टूट जाएँ उतना ही अच्छा...

वाणी गीत ने कहा…

एक ही ख़ामोशी कितने अर्थ समेटे। उसकी भाषा जो समझे वही समझे!