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बुधवार, 26 मई 2010

ये दर्द बयां करती है !



ऐसा नहीं कि 
जो ये कलम चल रही है,
हर दिशा में 
आग उगल रही है.
नाहक  ही बन्दूक सी
हर समय गरजा करती है.
कभी इसके दर्द को समझो,
ये सच है
कि ये लिखती यथार्थ है
मगर 
ये कोई न कोई दर्द बयां करती है.
चाहे वे शब्द
स्याही की जगह
आंसुओं से सने हों
शब्दों ने दर्द को
जीकर ही
कराह अपनी जो सुनाई
तभी तो वह विष वमन करती  है.
सुनती है कितनी जबानों से
दर्द से सराबोर दास्तानें 
उन्हीं में डूब कर
दर्द के अहसास को 
पहले जीती औ'
फिर दास्तान  बयां करती है.

9 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

well said, nice expressions

kunwarji's ने कहा…

बेहद संवेदनशील प्रस्तुति....

वाह!

कुंवर जी,

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

umda prastuti

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेहतरीन....कलम से मन की संवेदना झलक रही है...

rashmi ravija ने कहा…

दर्द के अहसास को
पहले जीती औ'
फिर दास्तान बयां करती है.
बहुत ही खूबसूरती से संवेदनशील कलम कि सच्चाई बयाँ कर दी आपने...सुन्दर कविता

बेनामी ने कहा…

शब्दों ने दर्द को
जीकर ही
कराह अपनी जो सुनाई
तभी तो वह विष वमन करती है.
यथार्थ

शोभना चौरे ने कहा…

बहुत सुन्दर
भावनाओ को कलम ही तो अभिव्यक्त कर सबके सम्मुख लाती है

Anita kumar ने कहा…

good one

Udan Tashtari ने कहा…

सुनती है कितनी जबानों से
दर्द से सराबोर दास्तानें
उन्हीं में डूब कर
दर्द के अहसास को
पहले जीती औ'
फिर दास्तान बयां करती है.

-बिल्कुल सही कहा!! तभी तो प्रभाव छोड़ जाती है. सुन्दर!!!