आज के रावण !
युगों पहले
रावण ने एक पाप किया था,
पराई नारी पर
प्रतिशोध के लिए
हरण किया था।
फिर उसके प्रायश्चित के लिए
पूरे परिवार का संताप भी जिया था।
फिर भी
आज उसके पुतले को फूँक कर
उसके कर्मों की सजा का
प्रतिफल दुहराया जा रहा है ।
जबकि
सीता के सतीत्व पर
कभी बुरी निगाह भी नहीं डाली ।
फिर भी आज तक
हम उसका पुतला जलाते है ।
आज कितने उससे पतित रावणों को देख रहे हैं,
चारों तरफ
वे नाली के कीड़ों की तरह बिलबिला रहे हैं ।
उन्हें हम छू भी नहीं सकते हैं,
जलाना और पकड़ना तो दूर की बात ।
उन्हें सिर्फ मादा चाहिए
वो उम्र में
माँ, बहन , बेटी या फिर पोती सी ही क्यों न हो ?
वे हवस के मारे ,
मारने के काबिल है ।
कुचल दो ऐसी मानसिकता को
किसी साँप के फन की तरह ।
लेकिन उसे मानसिकता का क्या होगा ?
जो दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है ,
उसके अंत की भी सोचो ,
कोई तो राह खोजो।
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