नई इबारतें
लिखते हैं हम ,
नयी कलम से ,
और खोजते हैं
दास्तान पुरानी।
जंग लगी कलमों की
स्याही भी सूखने लगी हैं ।
कुछ नया , नये जमाने का
लेकर फिर से
दस्तूर तो निभा लें हम।
साथ
तो चलना है,
जमाने के कदम दर कदम ,
कुछ नये दस्तूर तो बना लें हैं।
लिखी कुछअजब से कहानियाँ
लिखी और लिख कर मिटा दिया,
उंगली उठा रहे थे लोग,
ठगे
से रह गये हम।
बहुत मुश्किल है,
इस नये जमाने का चलन,
तुम लिखो कुछ भी
हम नाम अपने करा लेंगे ।
@रेखा श्रीवास्तव
1 टिप्पणी:
सुंदर रचना
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