गमज़दा घर !
उस मकान से
कभी आतीं नहीं
ऐसी आवाजें
जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।
खामोश दर,
खामोश दीवारें,
बंद बंद खिड़कियाँ,
ओस से तर हुई छतें
शायद रोई हैं रात भर ।
कोई इंसान भी नहीं
हँसता यहाँ,
मुस्कानें रख दी हैं गिरवी।
उनके यहाँ
खुशियाँ ने भी
न आने की कसम खाई है।
शायद इसीलिए
हर तरफ मायूसी छाई है।
-- रेखा श्रीवास्तव
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर।
बहुत ही सुंदर सार्थक रचना।
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