एलेक्सा!
हाँ वह एलेक्सा है,
आज की नहीं
बल्कि वह तो वर्षों से है।
वह एलेक्सा पैदा नहीं हुई थी,
माँ की मुनिया,
बापू की दुलारी,
विदा हुई जब इस घर से,
तब पैदा हुई एलेक्सा।
और फिर वही बनी रही,
उसको किसी मशीन में नहीं
बल्कि मशीन ही बना दिया
और
वह एक जगह नहीं
जगह जगह दौड़ती रहती है।
एक नहीं कई थे आदेश देने वाले,
वह रोबोट नहीं थी,
वह आज की तरह न थी
तब उसका नाम कुछ भी होता था।
उसे लाया जाता साधिकार,
फिर वह एलेक्सा बना दी गई।
तारीफ देखिए सदियों बाद जब
नयी एलेक्सा आई तो
वह भी स्त्रीलिंग है
और उसका निर्माता पुरुष।
आज की एलेक्सा तो बगावत भी कर सकती है,
कल की तो बोलना भी नहीं जानती थी,
चुपचाप आदेश पूरा करती रहती।
आज भी हर दूसरे घर में
दो दो एलेक्सा मिल जायेंगी
ये उनकी नियति है,
चाहे हाड़-माँस की हो या मशीन
उसे सिर्फ आदेश मानना है
बगैर नानुकुर किए
ये एलेक्सा हर युग में रही है
और रहेगी।
नारी का दूसरा अवतार एलेक्सा है।
12 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१०-१० -२०२२ ) को 'निर्माण हो रहा है मुश्किल '(चर्चा अंक-४५७७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बढियां सृजन
आभार, आती हूँ।
आभार सरिता।
वाह एलेक्सा 👌👍
सच एलेक्सा को एलेक्स भी कर सकते थे । पर वो इतना हुक्मनवाज न होता ।सटीक और गज़ब लिखा दीदी।
अच्छी रचना है।
अनूठी तुलना
बहुत सुन्दर रचना
ओह्ह... विचारणीय रचना।
सादर।
तारीफ देखिए सदियों बाद जब
नयी एलेक्सा आई तो
वह भी स्त्रीलिंग है
और उसका निर्माता पुरुष।
सच में आदेश का पालन करने वाली मशीन तक स्त्रीलिंग
विचारणीय सृजन
वाह!!!
बहुत सुन्दर रचना
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