आज की थीम है प्रकृति !
तपती धरा
ओजोन में छेद तो
हमने किया .
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गंगा मैली है
गंदगी हमारी है
पाप धोये हैं।
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बादल फटा
पृथ्वी की तपन को
मिटा न सका।
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कुल्हाड़ी पड़ी
रो दिए हरे पेड़
वे तो खुश हैं।
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उन्नत हम
आकाश में रहेंगे
धरती कहाँ?
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मिले कहीं तो
हम आकाश ले लें
मोल कुछ हो।
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ठूंठ के नीचे
छाँव नहीं मिलती
संभल जाओ .
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कभी सोचा है
ए सी में बैठ कर
लू फेंकते हो।
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पैसे में बेचीं
आकाश की आजादी
टावर रोपे।
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घुटता दम
जलती हुई हवा
सांस कैसे लें ?
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4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर हाइकु
wah.... di!!! lagta hai ek baar mujhe bhi koshish karni padegi...:)
nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
वाह ... कुछ न कुछ कहते हैं सभी हाइकू ...
लाजवाब ...
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