कुछ धुँधली सी
यादों पर
जब पड़ जाती है
उजली सी तस्वीरों का
चमकता हुआ सूरज।
फिर क्यों ?
वापस हम
जीने लगते हैं
अतीत के उन
पीले होते हुए पन्नों को।
कुछ मधुर
कुछ तिक्त
कुछ कटु
सब गुजरे हुए पल
फिर से जीने के लिए
उन तस्वीरों में घुस जाऊं।
उन पलों को
फिर से चुरा लाऊँ।
कैसे भी ?
बस एक बार
बच्चों का वही बचपन
वही भोलापन
फिर वापस आ जाए
कुछ दिनों के लिए सही।
दुनियां के अलग अलंग
जगहों पर
जी रहे बच्चे
एक बार फिर
एक साथ मेरे पास आ जाएँ।
निहार लूँ जी भर कर ,
दुलार दूँ जी भर कर ,
फिर और फिर
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं चाहिए।
6 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.03.2016) को "एक फौजी की होली " (चर्चा अंक-2278)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
अतीत के पन्ने जैसे यादें ताज़ा कर रहे हैं ...
अतीत के पन्ने सदा सुकून देते है , प्रेरणा भी
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आपकी यादों से जुडी यह कविता बहुत ही सुन्दर हैं.इस कविता के माध्यम से मेरी भी कई यादों ने मेरे आस-पास घेरा-सा बना लिया है. आपकी कविता के लिए बहुत बधाई. आपकी यह कविता मै शब्दनगरी ( तश्वीरें और यादें ) के माध्यम से पढ़ा और भी लेख पढ़ने की तीव्र इच्छा हुई.....आपके अन्य लेखों का इंतज़ार रहेगा....
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