चुनाव  अब धीरे धीरे  करीब आ रहे हैं और सब  अपनी छवि  के लिए  राजनैतिक समीकरण जिस तेजी से पूरे देश को उद्वेलित कर रहे हें लगता है कि सारे दलों के लोग अब बिल्कुल दूध के धुले होकर हमारी (जनता) की शरण में आने वाले हें लेकिन दलों की नीतियां भी तो देख लीजे फिर विश्वास कीजिये। 
ये दल और दलों के सिरमौर
जो कर रहे हें, 
उसके लिए हम रोज 
सवेरे उठकर अखबार बताने लेगे  हैं । 
जो उजला भी नहीं  है,
गले तक कालिख पी चुके हैं
कपड़ों की कालिमा से सने है
गले तक कालिख पी चुके हैं
कपड़ों की कालिमा से सने है
उसको ही चमकाने में लगे हैं,
उसकी चमक से उजले होंगे जैसे ,
देश के सारे काले कारनामे गुणगान करते उन्हीं लोगों के
सारे काले कारनामें छिपाने में लगे हैं।
कीचड उछालते हैं दूसरों पर 
छीटें कहाँ तक आये
इसे भूल कर वे 
खुद को पाक बताने में लगे हें।
अँधेरे के साए बसते जहाँ है,
जहाँ जिन्दगी जी रही सड़क पर,
जूठन चाट कर बचपन जी रहा है ,
उन्हें महलों के काबिज बताने में लगे हैं .
उनके नाम पर लगे दाग ,
दिखते नहीं है उन्हें कभी
शीशे के ऊपर लगे हैं परदे
जूठन चाट कर बचपन जी रहा है ,
उन्हें महलों के काबिज बताने में लगे हैं .
उनके नाम पर लगे दाग ,
दिखते नहीं है उन्हें कभी
शीशे के ऊपर लगे हैं परदे
और गहरे चादर से छुपाने में लगे हें।
कर रहे है प्रशस्ति उनकी 
कल तक जो थे पराये,
इज्जत बचा लें उनकी यही सोच से तो
इज्जत बचा लें उनकी यही सोच से तो
घर में अपने बुलाने में लगे हैं। 
इतने साल से समझ कर दीन हीन  
तिरस्कार का तोहफा जिन्हें दे रहे थे,
दिखने लगे जो दबंग सा कलेवर
दिखने लगे जो दबंग सा कलेवर
उन्हीं को फिर से रिझाने में लगे हें।
कल इन्हीं ने खींची थी रेखा
देश को वर्गों में बांटने की 
अब रचने लगे  ऐसे पैमाने  
गरीबों को अमीर बनाने में लगे हें।
खुद बन रहे हें कुबेर पुत्र 
निरंकुश , स्वेच्छाचारी , स्वयंभू 
डूबे सत्तामद में गले तक  
अंधी कमाई करने में लगे हें।
दिन भर जो खोदते हें मिट्टी
और पत्नियाँ ढो  रही हैं सिरों पर,
जो कभी कभी सोते हैं भूखे
जो कभी कभी सोते हैं भूखे
उनकी गरीबी का नाम मिटाने  में लगे हैं । 
अकूत सम्पदा के ढेर पर हें बैठे,
फिर अभी लिप्सा शेष उनमें
लूटने चले हैं उनकी कमाई
फिर अभी लिप्सा शेष उनमें
लूटने चले हैं उनकी कमाई
औरों का चैन चुराने में लगे हें।
मरने दो भूखे  
बढ़ने दो महंगाई मिटा कर कागजों पर गरीबी
अब अपनी सत्ता बचाने में लगे हें। 
