ओ गांधारी जागो !
जानबूझ कर
मत बांधो आखों पर पट्टी ,
सच को न देखने का
बहाना सब खोज रहे हैं ,
तुम्हारी आड़ लेकर
सिर्फ गला फाड़कर चीखने से
आँखें बंद कर चिल्लाने से
मानव नहीं बदलते है
गांधारी अपनी पट्टी खोलो
आँखों के
अब वक्त आ गया है
दुशासन का नहीं
अर्जुन पैदा करना का।
अब अनुगमन का नहीं
अग्रगमन के लिए हो प्रतिबद्ध
अपने घर के लाड़लों को
किसी शकुनि के हाथ नहीं
अपने साथ ले
द्रोपदी को बेइज्जत नहीं
इज्जत करने की सीख देनी होगी
तुम्हें अब गांधारी नहीं
बल्कि कुंती बनना होगा।
पांडव जैसे बनाकर
अपने पुत्रों को
इस देश की मिटटी की गरिमा से
अवगत कराना होगा .
ये काम सिर्फ तुम कर सकती हो जैसे
उन्हें जन्म सिर्फ तुम दे सकती हो
वैसे ही उन गुणों की सीख
सिर्फ तुम और तुम ही दे सकती हो।
सत्ता का मद
या हवस स्वामित्व की
अहम् से सराबोर बेटों की अब जरूरत नहीं
ये तो तुम भी जानती हो
अपने वंश के नाश की
त्रासदी झेली है तुमने
अब अपने लाडलों की परवरिश
खुली आँखों से
जागरूक होकर
अपनी कोख को
लज्जित होने से
बचाना होगा।
तभी तो
भविष्य में
इस भारत में
कई महाभारत के युद्ध
टाले जा सकेंगे .
18 टिप्पणियां:
पट्टी तो अपरोक्ष रूप से युद्ध का आह्वान है - वह भी गलित मनोकामना की
तभी तो
भविष्य में
इस भारत में
कई महाभारत के युद्ध
टाले जा सकेंगे .
बेहद सार्थक अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया है
आदरेया-शुभकामनाये-
धारी आँखों पे स्वयं, मोटी पट्टी मातु ।
सौ-सुत सौंपी शकुनि को, अंधापन अहिवातु ।
अंधापन अहिवातु, सुयोधन दुर्योधन हो ।
रहा सुशासन खींच, नारि का वस्त्र हरण हो ।
कुंती सा क्यूँ नहीं, उठाई जिम्मेदारी ।
सारा रविकर दोष, उठा अंधी गांधारी ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
गान्धारी सो नहीं रही है!
--
आज की गन्धारी ने तो जान-बूझकर आखों पर पट्टी बाँध ली है!
great thought,
अब अपने लाडलों की परवरिश
खुली आँखों से
जागरूक होकर
अपनी कोख को
लज्जित होने से
बचाना होगा।
तभी तो
भविष्य में
इस भारत में
कई महाभारत के युद्ध
टाले जा सकेंगे .
खुबसूरत नहीं एक महान आह्वान
सार्थक, मनोकामना शुभकामनाये
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..........
आँखों पर पट्टी बाँध कर अपना असंतोष व्यक्त किया था -पर संतान के प्रति उदासीनता गांधारी की भूल थी.
माँ को सचेत करती सशक्त रचना .... पट्टी तो खोलनी ही पड़ेगी ।
क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बेहद सार्थक रचना और सही आव्हान
सही शिक्षा और संस्कार देना हमारी ही जिम्मेदारी है.
ek dum sahi kaha
सार्थक आह्वान है रेखा जी ! आज की नारी को गांधारी बन कर नहीं रहना है उसे तो अपने बच्चों में सद्गुण एवं मानवीयता को विकसित करना ही होगा तभी यह भारत सन्मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा ! सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई !
प्रभावशाली एवं सार्थक रचना ....
बेहतरीन रचना!
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