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गुरुवार, 31 मई 2012

नई सोच !

घर में
एक नन्ही सी परी
फिर से आई थी.
मातम सा छा गया,
माँ निहार रही थी
उस नन्ही सी परी को
गीली हो गयी आखों की कोर
शायद अब और नहीं
कोई इसको प्यार करे,
हो सकता है
न कोई इसको दिल से स्वीकार करे .
वही
उसकी नन्ही सी बड़ी बहन
उसके गालों को छूकर
खुश हो रही थी.
दादी बोली -
'मरी क्यों इंतनी खुश होती है?
अभी तुझे रो रहे थे
वो क्या कम था?
जो ये भी रुलाने आ गयी.'
बड़ी बड़ी आँखें फैला कर
वह मासूम बोली -
'क्यों दादी,
मैंने कब रुलाया?
खुद भी हँसती हूँ और
सबको हँसाती हूँ.'
'तू न समझे  री
हमारे दिल रोते हें.'
नन्ही आकर गोद में बैठी
और पूछा - 'कहाँ दिल है?'
'क्यों?' दादी चौंकी .
'मैं उसके आंसूं पौंछ दूं ,
बता दूं उसको
हम रुलाने नहीं हंसाने आये हें.
पराये नहीं है,
परायों को भी
अपना बनाने आये हें.
जन्मे जिस घर में
वह तो अपना है ही
दूसरे घर में जाकर भी
उन्हें अपने बनाने आये हें.
हम एक नहीं
दो दो माता पिता को
अपनाने आये हें.
पुरानी सोच हम मिटा चुके
अब
एक नई सोच  बनाने आये हें.

11 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

bahut badhiya kavta...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है ये हर किसी कों हंसा देती है अपने प्यार से ... अच्छी कविता है ...

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन और मार्मिक रचना, साथ मे एक बड़ा सवाल "कहाँ है दिल"??

vandana gupta ने कहा…

बस यही सोच तो लानी है।

RITU BANSAL ने कहा…

सही में ..
सुन्दर कविता

मनोज कुमार ने कहा…

प्रेरक पंक्तियां।

रविकर ने कहा…

मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत खुबसूरत रचना....
सादर....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर ..कआश सब ऐसा हइ सोचें तो बेटियां होने पर कोई रोये नहीं

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सुन्दर लाजबाब रचना ...वाह अब सभी को अपनी सोच बदलनी होगी

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सुन्दर लाजबाब रचना ...वाह अब सभी को अपनी सोच बदलनी होगी