हर इंसान वाकिफ है जिन्दगी की हकीकत से
जिन्दगी के रास्ते आखिर श्मशान तक जाते हैं .
आता तो है हर इंसान इस दुनियां एक तरह से
जिन्दगी में अपनी फिर क्यों भटक जाते हैं।
ऐसा नहीं कि वे वाकिफ न हो अंजाम से अपने
फिर क्यों दौलत के लिए दलदल में फँस जाते हैं।
रिश्तों और जज्बातों को इस तरह दुत्कार दिया
जब याद आये अकेले में तो वे दम तोड़ जाते हैं।
गर फरिश्ते न बनें इंसान तो बने रहिये फिर भी
इंसानों की मैयत पर ही दो अश्क गिराए जाते हैं।
ऐसे ही न जाने कितने श्मशान तक जाने के लिए
आखिर में चार कन्धों के सहारे को तरस जाते हैं।