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शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

श्मशान तक !

    हर इंसान वाकिफ  है जिन्दगी की हकीकत से
        जिन्दगी के रास्ते आखिर श्मशान तक जाते हैं .

आता तो है हर इंसान इस  दुनियां एक तरह से 
जिन्दगी में अपनी फिर क्यों भटक जाते हैं।  

ऐसा नहीं कि वे वाकिफ न हो अंजाम से अपने 
फिर क्यों दौलत के लिए दलदल में फँस जाते हैं। 

रिश्तों और जज्बातों को इस तरह दुत्कार दिया 
जब याद आये अकेले में तो वे दम तोड़ जाते हैं।

गर फरिश्ते न बनें इंसान तो बने रहिये फिर भी 
इंसानों की मैयत पर ही दो अश्क गिराए जाते हैं। 

 ऐसे ही न जाने कितने श्मशान तक जाने के लिए 
आखिर में चार कन्धों के सहारे को तरस जाते हैं।

15 टिप्‍पणियां:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर रचना के लिए मेरा आभार स्वीकार करें.

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सच में ज़िन्दगी का किनारा तो वही है. सम सब के लिए. आपकी इन पंक्तियों से कृष्ण बिहारी नूर की लिखी ग़ज़ल याद आ रही है-

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

ज़िन्दगी मौत तेरी मंजिल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शमशान का रास्ता ढूंढना ही भटकाव से गुजरता है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया ग़जल!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन बात ...

Shalini kaushik ने कहा…

एकदम सही कहा आपने .बहुत सार्थक प्रस्तुति .आभार

Bhawna Kukreti ने कहा…

saachhi aur kharee baat

विभूति" ने कहा…

खुबसूरत अभिवयक्ति.....

Kailash Sharma ने कहा…

गर फरिश्ते न बनें इंसान तो बने रहिये फिर भी
इंसानों की मैयत पर ही दो अश्क गिराए जाते हैं।

...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

निहार रंजन जी आपका मेरे ब्लॉग पर बहुत स्वागत है।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

जिंदगी में भटकाव के बाद ...सुकून का विश्राम स्थल ...

Sadhana Vaid ने कहा…

जीवन के यथार्थ को बहुत ही खूबसूरती के साथ रचना में ढाल दिया है आपने रेखा जी ! हर जीवन का यही अंत होना है !इस सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

यही होता है,श्मशान-वैराग्य थोड़ी देर को जागता है और फिर सब जस का तस !

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

kash shamshaan ko roj ek baar yaad kar le insaan to ye sab na ho.

prabhavi prastuti.

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना ....