रे धृष्ट मानव
क्यों खेल रहा है?
प्रकृति के जर्रे जर्रे से,
माना बुद्धि बहुत है तेरी,
अनुसंधानों से है धरा भरी
तेरे सारे मंसूबों को
पल में खाक किया इसी प्रकृति ने,
थर्रायी धरती और
जब सागर ने उछाल भरी,
फटने लगा जब ज्वालामुखी
गैसों ने भी उबाल भरी,
लहरों ने समेटा अपने में,
तिनके सी तेरी सत्ता को,
ताश के पत्तों सा बिखर गयी
वर्षों से सजाई दुनिया तेरी।
जीवन मानव का सिमट गया
लहरों के तेज सुनामी में
जो बचा खुचा सा जीवन है
गैसों ने इसे लपेट लिया।
हाहाकार मचा विश्व में
ये हाल तो उस धरती का है,
जो जागरुक थे भू कम्पन से।
शेष अभी तो सोच रही है,
कब कैसे क्या करना है?
जब घट जाएगी घटनाएँ
तब आकलन करेंगे कमियों का,
फिर क़ानून बनेंगे, लागू होंगे,
मानक पर फिर मानक होंगे।
कुछ मानक पैसे से बिकेंगे
कुछ तो बस मानक होंगे।
जीवन निर्दोषों का जाएगा,
उनके लिए ही त्रासदी होगी।
कब सुना कोई बड़ा
इस हादसे का शिकार हुआ।
अरे अब तो चेतो तुम
धरा के मत खिलवाड़ करो।
मानव हो मानव बनकर
मानव सा ही व्यवहार करो।
क्यों खेल रहा है?
प्रकृति के जर्रे जर्रे से,
माना बुद्धि बहुत है तेरी,
अनुसंधानों से है धरा भरी
तेरे सारे मंसूबों को
पल में खाक किया इसी प्रकृति ने,
थर्रायी धरती और
जब सागर ने उछाल भरी,
फटने लगा जब ज्वालामुखी
गैसों ने भी उबाल भरी,
लहरों ने समेटा अपने में,
तिनके सी तेरी सत्ता को,
ताश के पत्तों सा बिखर गयी
वर्षों से सजाई दुनिया तेरी।
जीवन मानव का सिमट गया
लहरों के तेज सुनामी में
जो बचा खुचा सा जीवन है
गैसों ने इसे लपेट लिया।
हाहाकार मचा विश्व में
ये हाल तो उस धरती का है,
जो जागरुक थे भू कम्पन से।
शेष अभी तो सोच रही है,
कब कैसे क्या करना है?
जब घट जाएगी घटनाएँ
तब आकलन करेंगे कमियों का,
फिर क़ानून बनेंगे, लागू होंगे,
मानक पर फिर मानक होंगे।
कुछ मानक पैसे से बिकेंगे
कुछ तो बस मानक होंगे।
जीवन निर्दोषों का जाएगा,
उनके लिए ही त्रासदी होगी।
कब सुना कोई बड़ा
इस हादसे का शिकार हुआ।
अरे अब तो चेतो तुम
धरा के मत खिलवाड़ करो।
मानव हो मानव बनकर
मानव सा ही व्यवहार करो।