ओ कृष्णा
तुम फिर आ जाओ
धरती फिर त्रस्त है
अब एक नहीं
कई कृष्णा बन कर
तुमको आना होगा।
द्वापर में --
एक रची गयी महाभारत
वो रची द्यूत क्रीड़ा
तब खामोश से
सब रचते रहे ,
बिछाते रहे बिसात ,
द्रोपदी एक थी
एक था धृष्टराष्ट्र ,
एक था दुर्योधन ,
एक था दुःशासन ,
आसान था पांडवों को शरण देना।
आज धरती पर
धर्म और सत्य की गरिमा
मिटती जा रही है।
अब कौरवों की जमात
खड़ी है हर गली और सड़क पर ,
अब कैसे बचाओगे इन कृष्णाओं को
तुम फिर आ जाओ
धरती फिर त्रस्त है
अब एक नहीं
कई कृष्णा बन कर
तुमको आना होगा।
द्वापर में --
एक रची गयी महाभारत
वो रची द्यूत क्रीड़ा
तब खामोश से
सब रचते रहे ,
बिछाते रहे बिसात ,
द्रोपदी एक थी
एक था धृष्टराष्ट्र ,
एक था दुर्योधन ,
एक था दुःशासन ,
आसान था पांडवों को शरण देना।
आज धरती पर
धर्म और सत्य की गरिमा
मिटती जा रही है।
अब कौरवों की जमात
खड़ी है हर गली और सड़क पर ,
अब कैसे बचाओगे इन कृष्णाओं को
जो हो रही हैं निर्वस्त्र
हर जगह, हर तरह से
अब तो आ जाओ बचाने को इन्हें
कलियुग में बचाओ तो जानेंगे
तुम नहीं बदले
युग बदल गये ।