tag:blogger.com,1999:blog-90618046111663518282024-03-09T18:46:32.862-08:00hindigenजीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger330125tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-68976288657447459072023-09-09T07:15:00.001-07:002023-09-09T07:15:07.902-07:00तलाश!<p> तलाश!</p><p><br /></p><p>आज बहुत दिन बाद</p><p>निकली हूँ खोज में</p><p>कहीं देखे हैं किसी ने,</p><p>मेरे शब्द खो गये,</p><p>दूसरे शब्दों में</p><p>हिरा गये कहीं।</p><p>खोजा मन के हर कोने में,</p><p>बाहर भी खोजा गहराई से,</p><p>सिर्फ वही नहीं</p><p>मेरे भाव भी गुम है</p><p>मेरे अंर्त से।</p><p>रचूँ क्या?</p><p>लिखूँ क्या?</p><p>कलम भटक रही है,</p><p>खोज में उनके</p><p>कोई तो बता दे कि </p><p>रचना क्या है?</p><p>इतनी विकृति दिख रही है,</p><p>विद्रूपता छाई है</p><p>जीवन के हर प्रहर में।</p><p>कहीं बिखरे बिखरे से घर हैं,</p><p>कहीं घर रह गये है,</p><p>ईंट गारे के मकान।</p><p>एक छत के नीचे </p><p>सब गूँगे जी रहे है।</p><p>बस आवाजों को तरसते कान</p><p>मंद रोशनी के बचे हैं।</p><p><br /></p><p>@रेखा श्रीवास्तव</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-68803417438759178432023-08-25T04:28:00.006-07:002023-08-25T04:28:51.850-07:00नई इबारतें !<p>
</p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">नई
इबारतें</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">लिखते
हैं हम ,</span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">नयी कलम से ,</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">और
खोजते हैं </span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">दास्तान
पुरानी। </span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">जंग
लगी कलमों की </span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">स्याही
भी सूखने लगी हैं ।</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">कुछ
नया , नये जमाने का</span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">लेकर फिर से <br /></span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">दस्तूर
तो निभा लें हम।</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">साथ
तो चलना है, <br /></span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">जमाने के कदम दर कदम ,<br /></span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">कुछ
नये दस्तूर तो बना लें हैं।</span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">लिखी कुछअजब से कहानियाँ <br /></span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">लिखी और लिख कर मिटा दिया,</span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">उंगली उठा रहे थे लोग, <br /></span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">ठगे
से रह गये हम। <br /></span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">बहुत
मुश्किल है,</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">इस
नये जमाने का चलन,</span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">तुम
लिखो कुछ भी </span></p>
<p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">हम
नाम अपने करा लेंगे ।</span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;"> </span></p><p style="font-family: "Noto Sans Devanagari"; margin: 0in;"><span style="font-size: small;">@रेखा श्रीवास्तव <br /></span></p>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-85671164414383480822023-07-14T05:08:00.001-07:002023-08-19T04:48:12.023-07:00तानों का विष!<p> </p><p> <span style="font-size: medium;">इन तानों का विष कितना जहरीला है?</span></p><p><span style="font-size: medium;"> पीकर मनुज मरता नहीं घुल जाता है। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> </span></p><p><span style="font-size: medium;"> रोज रोज दें बस एक खुराक बहुत है,</span></p><p><span style="font-size: medium;"> एक दिन वह नीला जरूर पड़ जाता है।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> </span></p><p><span style="font-size: medium;"> वह शिव नहीं जो गरल कंठ में रोक सके <br /></span></p><p><span style="font-size: medium;"> जीवन भर नीलकंठ नहीं बन पाता है। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> </span></p><p><span style="font-size: medium;"> मरता नहीं है जीवन भर घुट घुट कर </span></p><p><span style="font-size: medium;"> मौत का मंजर देख देख कर जाता है। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> </span></p><p><span style="font-size: medium;"> कैसे हो तुम जग वालों जीने भी नहीं देते,</span></p><p><span style="font-size: medium;"> मरने के लिए भी आजाद नहीं हो पाता है। </span><span style="font-size: medium;"><br /></span></p><p><span style="font-size: medium;"> </span><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-71128084722759375272023-06-06T04:36:00.001-07:002023-06-06T04:36:05.915-07:00पैमाना !<p> जीवन में</p><p>खुशियों का पैमाना </p><p>अपना अपना होता है ।</p><p>यह वक्त भी </p><p>तय करता है ,</p><p>और हालात भी ।</p><p>दुधमुँहे को छोड़</p><p>माँ काम पर जाती है ।</p><p>उस नन्हे की भूख </p><p>खोजती है अपनी माँ को ,</p><p>अचानक माँ को पाकर</p><p>जो खुशी उसे मिली </p><p>बयान नहीं उसका ।</p><p>तपती सड़क पर</p><p>रिक्शा खींचते हुए को</p><p>कहीं दिख जाये</p><p>जलधारा </p><p>उसकी आँखों की चमक</p><p>उसको मिल जाती</p><p>खींचने की नयी शक्ति </p><p>जो खुशी उसे मिली</p><p>बयान नहीं उसका ।</p><p>माँ का दुलारा / दुलारी</p><p>जब आते हैं</p><p>छुट्टियों में</p><p>चाहे वे कितने ही बड़े हों</p><p>जो खुशी माँ की होगी</p><p>बयान नहीं उसका ।</p><p>आफिस के ए सी चैंबर में</p><p>आराम से बैठे</p><p>जब पाते है अपना हिस्सा</p><p>कितना भी कमा रहे हों</p><p>इसके बिना बरकत कहाँ ?</p><p>उस मन की खुशी </p><p>बयान नहीं उसका ।</p><p>कहाँ तक बयान करें </p><p>ये खुशी के पल </p><p>बाजार में नहीं मिलते </p><p>खरीद कुछ भी लें</p><p>लेकिन ये</p><p>उपहार में नहीं मिलते ।</p><p><br /></p><p><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-73266860480574764322023-05-26T03:14:00.001-07:002023-05-26T03:14:36.340-07:00कल को जीना है!<p> सुनो मुझे कल को जीना है </p><p>कोई चलेगा क्या कल में?</p><p>मत चलो कोई, </p><p>फिर भी मुझे वापस जीना है,</p><p>गुजरे हुए जीवन के उन प्यारे लम्हों को,</p><p>क्या गुजरा, क्या खोया, क्या पाया? </p><p>सब को फिर मिलकर जीना है।</p><p>बचपन की अठखेलियाँ </p><p>भाई-बहन के वह झगड़े,</p><p>शीशम पर पड़ा हुआ झूला </p><p>सखियों संग मिलकर </p><p>मुझे फिर से झूलना है।</p><p>खेल में कब घड़ी लगी थी,</p><p>जी भरता कब था?</p><p>बंद द्वार को खटका कर, </p><p>जब घर आते थे, </p><p>फिर वह डाँट का कसैला सा शरबत पीना है, </p><p>मुझे फिर कल को जीना है। </p><p>गले लग सखियों के फिर, </p><p>मिलकर गुट्टे और कड़क्को</p><p>फिर से खेल सकूँ </p><p>अब कौन कहाँ जीता है?</p><p>फिर एक बार सभी संग </p><p>उस युग में जाकर </p><p>मुझे फिर कल को जीना है । </p><p>कहाँ सभी होते थे अपने,</p><p>रखते थे अधिकार सभी , </p><p>डर सिर्फ घरवालों का ही नहीं, </p><p>पड़ोसी भी सब चाचा भाई हुआ करते थे, </p><p>अधिकार सभी अपना सा रखते थे ,</p><p>मुझे उन्हीं दिन में जाना है,</p><p>मुझे फिर कल को जीना है। </p><p>आज नहीं है कोई अपना सा</p><p>सब की नजरें स्वार्थ भरी हैं,</p><p>कब छोड़ चल देंगे ?</p><p>इस जहर को अब न पीना है</p><p>मुझे फिर कल को जीना है।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-16089438870274416412023-01-29T06:05:00.001-08:002023-06-11T20:03:39.919-07:00खोजते हैं!<p><span style="font-size: large;"> कितना अजीब सोचते हैं ये दुनिया वाले,</span></p><p><span style="font-size: large;">परिंदों को बेघर कर आशियाना खोजते हैं।</span></p><p><br /></p><p><span style="font-size: large;">बसा कर आसमान तक मंजिलों का जाल,</span></p><p><span style="font-size: large;">अब चाँद-तारों भरा आसमान खोजते हैं।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">उजाड़ कर अपने ही बाग गाँवों के ,</span></p><p><span style="font-size: large;">शहर की धूप में छाँव खोजते हैं।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">अपने खेतों की माटी में विष बो कर,</span></p><p><span style="font-size: large;">अब शहरों में छतों पर खेत खोजते हैं।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">कैसे नादान बनते हैं ये सयाने लोग ,</span></p><p><span style="font-size: large;">गाँव छोड़ कर शहरों में अपनत्व खोजते हैं।</span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-77007524020734076822022-10-10T07:50:00.001-07:002023-06-11T20:15:46.216-07:00गमज़दा घर !<p> </p><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">गमज़दा घर !</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">उस मकान से</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">कभी आतीं नहीं </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">ऐसी आवाजें</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">खामोश दर,</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">खामोश दीवारें, </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">बंद बंद खिड़कियाँ,</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">ओस से तर हुई छतें</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">शायद रोई हैं रात भर ।</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">कोई इंसान भी नहीं </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">हँसता यहाँ,</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">मुस्कानें रख दी हैं गिरवी। </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">उनके यहाँ </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">खुशियाँ ने भी</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">न आने की कसम खाई है।</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">शायद इसीलिए</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">हर तरफ मायूसी छाई है।</span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;"> </span></div><div dir="auto"><span style="font-size: x-large;">-- रेखा श्रीवास्तव <br /></span></div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-16970167109356034082022-10-09T01:31:00.001-07:002022-10-09T01:42:16.408-07:00एलेक्सा!<div class="ii gt" id=":os"><div class="a3s aiL" id=":or"><div dir="auto"><div dir="auto">एलेक्सा!</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">हाँ वह एलेक्सा है,</div><div dir="auto">आज की नहीं</div><div dir="auto">बल्कि वह तो वर्षों से है।</div><div dir="auto">वह एलेक्सा पैदा नहीं हुई थी,</div><div dir="auto">माँ की मुनिया,</div><div dir="auto">बापू की दुलारी,</div><div dir="auto">विदा हुई जब इस घर से,</div><div dir="auto">तब पैदा हुई एलेक्सा।</div><div dir="auto">और फिर वही बनी रही, </div><div dir="auto">उसको किसी मशीन में नहीं </div><div dir="auto">बल्कि मशीन ही बना दिया</div><div dir="auto">और </div><div dir="auto">वह एक जगह नहीं</div><div dir="auto">जगह जगह दौड़ती रहती है।</div><div dir="auto">एक नहीं कई थे आदेश देने वाले,</div><div dir="auto">वह रोबोट नहीं थी,</div><div dir="auto">वह आज की एलेक्सा नहीं थी</div><div dir="auto">तब उसका नाम कुछ भी होता था।</div><div dir="auto">उसे लाया जाता साधिकार,</div><div dir="auto">फिर वह एलेक्सा बना दी गई।</div><div dir="auto">तारीफ देखिए सदियों बाद जब</div><div dir="auto">नयी एलेक्सा आई तो</div><div dir="auto">वह भी स्त्रीलिंग है</div><div dir="auto">और उसका निर्माता पुरुष।</div><div dir="auto">आज की एलेक्सा तो बगावत भी कर सकती है,</div><div dir="auto">कल की तो बोलना भी नहीं जानती थी, </div><div dir="auto">चुपचाप आदेश पूरा करती रहती।</div><div dir="auto">आज भी हर दूसरे घर में </div><div dir="auto">दो दो एलेक्सा मिल जायेंगी</div><div dir="auto">ये उनकी नियति है,</div><div dir="auto">चाहे हाड़-माँस की हो या मशीन</div><div dir="auto">उसे सिर्फ आदेश मानना है</div><div dir="auto">बगैर नानुकुर किए </div><div dir="auto">ये एलेक्सा हर युग में रही है </div><div dir="auto">और रहेगी।</div><div dir="auto">नारी का दूसरा अवतार एलेक्सा है।</div></div><div class="yj6qo"></div><div class="adL">
</div></div></div><div class="hi"></div><div class="ajx"><br /></div><table class="cf wS" role="presentation"><tbody><tr><td class="amq"><br /></td><td class="amr"><div class="nr wR"><div class="amn"></div></div><br /></td></tr></tbody></table><p> </p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-41618595711272774492022-08-29T06:31:00.001-07:002022-08-29T06:31:21.584-07:00हवेली बनाम पीढी!<p> <span style="font-size: medium;">लोग कहते हैं ,</span></p><p><span style="font-size: medium;">हवेलियां मजबूत होती हैं ,</span></p><p><span style="font-size: medium;">एक पीढ़ी उसको बनाती है </span></p><p><span style="font-size: medium;">तो </span></p><p><span style="font-size: medium;">दूसरी पीढ़ी उसको सजाती है ।</span></p><p><span style="font-size: medium;">ये मैंने भी देखा है ,</span></p><p><span style="font-size: medium;">साथ ही देखा है - </span></p><p><span style="font-size: medium;">बड़ी बड़ी हवेलियों को दरकते हुए ,</span></p><p><span style="font-size: medium;">भले ही ईंटें न बिखरें ,</span></p><p><span style="font-size: medium;">छतें न दरकेंं<br /></span></p><p><span style="font-size: medium;">फिर भी दीवारों में दरारें आ ही जाती हैं।</span></p><p><span style="font-size: medium;">बनने लगती है,</span></p><p><span style="font-size: medium;">नयी दीवारें आँगन में,</span></p><p><span style="font-size: medium;">बाँटने को पीढ़ियों के अंतर को।</span></p><p><span style="font-size: medium;">कोई भी हवेली अखण्ड नहीं होती है, </span></p><p><span style="font-size: medium;">वो बरगद या पीपल नहीं होती,</span></p><p>जो शाख-दर-शाख चलती ही रहे।</p><p>बीज भले दूर दूर तक जाकर उग आयें</p><p>हवेलियाँ कहीं नहीं जाती है।</p><p>एक दिन ढह जाती हैं </p><p>और खण्डहर बन सदियों तक भले पड़ी रहें।</p><p><span style="font-size: medium;"> </span><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-30389213864144901752022-08-29T06:20:00.002-07:002022-08-29T06:20:45.437-07:00इतिहास बन गए!<p> गुजरे साल के वो भयावह दिन ,</p><p>किस तरह एक तारीख़ बन गए। </p><p> </p><p>समेट कर जो कुछ रखा था यादों में ,</p><p>कुछ ज़ख्म कुछ फाहे बन गए। </p><p> </p><p>नहीं जानते कौन कब बेगाने हुए ,</p><p>कौन दिल से जुड़े और साये बन गए। </p><p> </p><p>जिया था जीवन साथ जिनके उम्र भर , <br /></p><p>गर्दिश में देखा तो अनजाने बन गए। <br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-60446617774763493192022-08-29T06:20:00.001-07:002022-08-29T06:20:18.462-07:00रिश्तों की सिलन!<p> रिश्तों में सिलन</p><p>जन्म से होती है,</p><p>तभी तो</p><p>सब मिलकर बनता है</p><p>परिवार परिधान।</p><p>सबका अलग अलग अस्तित्व</p><p>फिर भी जुड़े होते है ।</p><p>सारे अवयव</p><p>जुड़े होते है सिर्फ माँ से,</p><p>और माँ संतुलन बनाये</p><p>सबको धारे रहती है।</p><p>समय के साथ</p><p>आकार बढ़ता है फिर</p><p>अपने ही सामने </p><p>जब टूटने लगती है वह सिलन,</p><p>फिर नहीं सिल पाती है</p><p>सिल भी ले तो</p><p>नहीं हो पाते हैं</p><p>सब एक साथ , एक आकार में।</p><p>खुद सुई तागा लिए</p><p>कभी इसको सुधारती है</p><p>और कभी उसको</p><p>लेकिन खुद दोषी बना दी जाती है</p><p>और एक किनारे बैठा दी जाती है।</p><p>कहीं कॉलर,</p><p>कहीं आस्तीन,</p><p>कहीं बाँधने वाला फीता,</p><p>शेष बचा भाग उड़ जाता है हवा में,</p><p>वो देखती रहती है बेबसी से,</p><p>उस सिलन की सूत्रधार ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-48356760552099244922022-08-19T23:08:00.001-07:002022-08-19T23:08:36.960-07:00सावन!<p> सावन लिखा</p><p>तो</p><p>मायका याद आया,</p><p>इस घर से वहाँ जाना,</p><p>नीम पर पड़ा झूला,</p><p>सारी सहेलियों की टोली,</p><p>हफ्तों पहले से सपने</p><p>तैरने लगते थे।</p><p>कितनी तैयारी होती थी?</p><p>छोटी बहनों के लिए</p><p>कुछ लेकर तो जाना है,</p><p>भाई की पसंद की राखी</p><p>पसंद की मिठाई,</p><p>भाभी की चूड़ियाँ, कंगन</p><p>सब इकट्ठा करके चलते थे।</p><p>आज </p><p>वहाँ न माँ-पापा रहे</p><p>न बहनें - सब अपने घर</p><p>अब नहीं मिल पाते वर्षों,</p><p>और भाई भी रूठ गये,</p><p>फिर कैसा सावन, राखी, चूड़ियाँ, कंगन</p><p>सब बेमानी हो गये।</p><p>खो गये सब मायने</p><p>और मायका भी तो बचा कहाँ?</p><p>न माँ, न पापा और न भाई हों जहाँ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-75331810467890178482022-08-19T23:06:00.001-07:002022-08-19T23:06:37.239-07:00ऐसा भी घर !<p> उस मकान से</p><p>कभी आतीं नहीं </p><p>ऐसी आवाजें</p><p>जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।</p><p>खामोश दर,</p><p>खामोश दीवारें, </p><p>बंद बंद खिड़कियाँ,</p><p>ओस से तर हुई छतें</p><p>शायद रोई हैं रात भर ।</p><p>कोई इंसान भी नहीं </p><p>हँसता यहाँ,</p><p>मुस्कानें रख दी हैं गिरवी। </p><p>उनके यहाँ </p><p>खुशियाँ ने भी</p><p>न आने की कसम खाई है।</p><p>शायद इसीलिए</p><p>हर तरफ मायूसी छाई है।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-19682474609810219202022-08-04T05:34:00.002-07:002022-08-04T05:34:26.782-07:00माँ : एक भाव!<p> </p><div dir="auto">माँ </div><div dir="auto">क्या </div><div dir="auto">एक इंसान भर होती है</div><div dir="auto">फिर क्यों लोग </div><div dir="auto">सगी और सौतेली का ठप्पा लगा देते हैं।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">माँ </div><div dir="auto">एक भाव है,</div><div dir="auto">जरूरी नहीं कि उसने</div><div dir="auto">हर बच्चे को जन्म दिया हो,</div><div dir="auto">फिर भी संभव है </div><div dir="auto">कि बहुतों को प्यार दिया हो।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">माँ</div><div dir="auto">जो प्यार बाँटती है,</div><div dir="auto">अपने बच्चों में, </div><div dir="auto">पराये बच्चों में भी,</div><div dir="auto">वह न देवकी होती है न यशोदा</div><div dir="auto">फिर भी वह माँ होती है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">माँ</div><div dir="auto">ऐसी भी होती है,</div><div dir="auto">समेट लेती है,</div><div dir="auto">उन बच्चों को भी</div><div dir="auto">जो आँखों में आँसू लिए </div><div dir="auto">नजर आ जाते है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">माँ</div><div dir="auto">वह इंसान है </div><div dir="auto">जिसे हर बच्चे में</div><div dir="auto">अपना ही अंश दिखाई देता है</div><div dir="auto">और प्यार तो वह अपरिमित बाँटती है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">हाँ </div><div dir="auto">माँ </div><div dir="auto">एक भाव ही होती है,</div><div dir="auto">अपने पराए से परे</div><div dir="auto">आँचल पसारे , दिल खोले,</div><div dir="auto">आँखों में प्यार लिए होती है।</div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-39939445114204784252022-06-25T02:55:00.002-07:002022-06-25T02:55:13.517-07:00कितना बदल गया संसार !<p> </p><p>कितना बदल गया संसार !</p><p><br /></p><p>दर वही,</p><p>द्वार वही,</p><p>बाड़ी भी वही</p><p>बस कुछ दीवारें बढ़ गईं।</p><p><br /></p><p>कुछ दरवाजे,</p><p>कुछ खिड़कियाँ,</p><p>पत्थरों औ' रोशनी की </p><p>चमक बस कुछ और बढ़ गई।</p><p><br /></p><p>आँगन वही,</p><p>चेहरे मोहरे वही,</p><p>जमीन भी वही</p><p>बस धन की दूरियाँ बढ़ गईं।</p><p><br /></p><p>जीवन वही,</p><p>रिश्ते भी वही,</p><p>रगों में बहता खून वही,</p><p>बस ज़िन्दगी में तल्खियाँ बढ़ गईं।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-7045698509037111962022-06-25T02:52:00.003-07:002022-06-25T02:52:43.775-07:00ये साठ साला औरतें!<p>ये साठ साला औरतें !</p><p><br /></p><p>ये कल की साठ साला औरतें,</p><p>घर तक ही सीमित रहीं,</p><p>बहुत हुआ तो</p><p>मंदिर, कीर्तन और जगराते में,</p><p>पहन कर हल्के रंग की साड़ी,</p><p>चली जाती थीं,</p><p>चटक-मटक अब कहाँ शोभा देगा उन्हें</p><p>और कभी कभी तो उनकी आने-जाने की कुछ साड़ियाँ वर्षों तक</p><p>चलती रहती थी,</p><p>कहीं गईं तो पहन लिया और आकर उतार कर बक्से में धर दिया।</p><p>ये कल की साठ साला औरतें - </p><p>हाथ पकड़ कर पोते-पोतियों के</p><p>पड़ोस में जाकर बैठ आती,</p><p>कुछ अपने मन की कह कर, </p><p> कुछ उनके मन की सुन आती।</p><p>वही तो हमराज होती थीं।</p><p>पति के साथ बैठकर तो बतियाने का रिवाज कम था,</p><p>जरूरत पर बतिया लो, पैसे माँग लो या कहीं बुलावे में जाना है, की सूचना दे दो।</p><p>ये थी कल की साठ साला औरतें।</p><p>और </p><p>आज की साठ साला औरतें-</p><p>लगती ही नहीं है कि साठ साला हैं ,</p><p>आज तो जिंदगी शुरू ही अब होती है,</p><p>रिटायरमेंट तक दौड़ते भागते, </p><p>घर बनाते, बच्चों के भविष्य को सजाते निकल जाता है।</p><p>कब सजने का सोच पाईं,</p><p>अब किटी पार्टी का समय आया है,</p><p>अब सखी समूह में घूमने का समय आया है,</p><p>नहीं बैठती है, अब बच्चों को लेकर पार्क में,</p><p>खुद योग में डूब कर स्वस्थ रहना सीख जाती हैं।</p><p>तिरस्कार नयी पीढ़ी का क्यों सहें?</p><p>अपने को अपनी उम्र में ढाल लेती हैं।</p><p>अपने गुणों को डाल कर नेट पर समय बिताती हैं,</p><p>अपने गुणों से ही पहचान बनाती हैं।</p><p>जिंदगी जिओ जब तक,</p><p>जिंदादिली से जिओ , </p><p>जो संचित अनुभव है, बाँटो और खर्च करो,</p><p>अपने की तोड़कर अवधारणा फैल रहीं है दुनिया में।</p><p>ये साठ साला औरतें लिख रहीं इतिहास नया।</p><p>ये आज की साठ साला औरतें, </p><p>युवाओं से भी युवा है।</p><p>जीना हमें भी आता है,</p><p>कहकर मुँह चिढ़ा रहीं हैं नयी पीढ़ी को,</p><p>वह पहनतीं हैं जो सुख देता है,</p><p>सुर्ख़ रंगों में सजे परिधान संजोती हैं,</p><p>लेकिन अब भी लोगों की आँखों में किरकिरी की तरह </p><p>खटक जाती है इनकी जिंदादिली </p><p>क्योंकि</p><p>आज की साठ साला औरतें </p><p>सारी बेड़ियाँ तोड़ना चाहती है ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-78770790412047677232022-06-08T04:33:00.002-07:002022-06-08T04:33:13.396-07:00कुछ खो गया!<p> कुछ खो गया!</p><p><br /></p><p>इस सफर में</p><p>कुछ खो गया, या छूट गया,</p><p>हर तरफ उँगली उठी - </p><p>'दोषी तुम हो,</p><p>ध्यान कहाँ रहता है?</p><p>कहाँ खोई रहती हो?</p><p>गाढ़ी कमाई का पैसा है।'</p><p>आँखें बंद किए,</p><p>मींच कर ओंठ,</p><p>आँसू घुटकती गले के नीचे,</p><p>रसोई में खड़ी रोटी सेंक रही थी।</p><p>पी गई, सब आरोप, कटाक्ष </p><p>जो छोटे और बड़ों ने दिए थे।</p><p>एक सवाल उठा जेहन में - </p><p>कभी सोचा है मैंने अपना क्या क्या खोया है?</p><p>अपनी बेबाक आवाज़ खोई है,</p><p>अन्याय के खिलाफ उठती हुई हुँकार खोई है,</p><p>वे शब्द खोए, </p><p>जिन पर पहरा लगा हुआ है,</p><p>अपना सच कहने का हौसला खोया है,</p><p>मेरा सच आग के हवाले हो गया,</p><p>सच का हुआ पोस्टमार्टम तो</p><p>कलम, कागज,शब्द खो गये,</p><p>तब भी नहीं पूछा जब - </p><p>माँ खो गई,</p><p>पापा खो गये,</p><p>भाई भी तो खो दिए।</p><p>नहीं पूछा किसी ने कि - क्या खो दिया?</p><p>मत रो सब मौजूद है।</p><p>वो दिखा नहीं जो खोया मैंने,</p><p>अपना देख स्यापा मना रहे हैं।</p><p>उसको दोषी बना रहे हैं, </p><p>जिसने अपराध किया ही नहीं।</p><p>अपराधी खुद उँगली उठा रहे हैं।</p><p>बेगुनाह पर तोहमत लगा रहे हैं।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-25490679099543048722022-06-05T05:43:00.000-07:002022-06-05T05:43:17.397-07:00कुछ बोलती खामोशी!<p> खामोशी </p><p>यूँ ही नहीं होती</p><p>बोलती है </p><p>कहती है अपनी व्यथा ,</p><p>बस उसे सुननेवाला चाहिए ।</p><p>ओढ़ नहीं लेता कोई यूँ ही </p><p> खामोशी की चादर </p><p>विवश होता है ओढ़ने को ।</p><p>क्यों सोचा है कभी किसी ने ?</p><p>शायद नहीं -</p><p>नहीं तो खामोशी ओढ़ी ही क्यों जाती ?</p><p>खामोश सिर्फ जुबाँ ही नहीं होती, </p><p>आँखों में भी फैली होती है ,</p><p>वह खामोशी</p><p>जिसे हर कोई पढ़ नहीं सकता है। </p><p>खामोशी उस घर की</p><p>जिससे अभी अभी विदा हुआ कोई सदस्य</p><p>बस सिसकियों ही गूँजती है।</p><p>खामोशी </p><p>उस इंसान की जिसने खोया है अपने किसी अंश को,</p><p>कोई पढ़ सकता है ?</p><p>शायद वही जो भुक्तभोगी है,</p><p>अब खामोशी ओढ़ना मजबूरी है,</p><p>न कहीं जाना न आना</p><p>हालात सबके वही है </p><p>शायद ही कोई होगा </p><p>जिसने खोया न हो कोई अपना ,</p><p>उस दर्द को भी पीना अकेले ही है</p><p>खामोशी से </p><p>कोई काँधे पर हाथ भी न धरेगा</p><p>न पौंछेगा आँसू कोई </p><p>दर्द ओढ़ कर जीना है </p><p>दर्द का विष भी पीना है </p><p>वह भी खामोशी से ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-85087350809568362172022-06-03T08:06:00.001-07:002022-06-03T08:06:46.011-07:00मैं क्या हूँ?<p> मैं भाव हूँ</p><p>उमड़ता हूँ तो छा जाता हूँ</p><p>काले बादलों सा,</p><p>बरसता हूँ तो भी छा जाता हूँ</p><p>कागजों पर स्याही के संग</p><p>कलम पर सवार होकर </p><p>देखा होगा आपने?</p><p><br /></p><p>पीड़ा भी हूँ,</p><p>और उल्लास भी</p><p>रुदन हूँ औ' हास भी,</p><p>अपना भी हूँ औ' दूसरे की भी</p><p>बस अपना समझ जिया उसको,</p><p>गरल बन पिया उसको,</p><p>जीवन में कुछ नया कर गया,</p><p>देखा होगा आपने?</p><p><br /></p><p>मैं शब्द हूँ,</p><p>उमड़ता हूँ दिमाग में</p><p>कभी कल्पना से,</p><p>कभी साक्षी बनने से</p><p>कभी तो भोक्ता भी होता हूँ,</p><p>ढल जाता हूँ - </p><p>कभी कविता में,</p><p>कभी कहानी में</p><p>उतर कर कागजों पर रच जाता हूँ।</p><p>देखा होगा आपने?</p><p><br /></p><p>बस इसीलिए तो हर रूप में स्वीकृति हूँ,</p><p>पीड़ा, भाव और शब्दों की अनुकृति हूँ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-60545040694028891962022-05-16T01:35:00.001-07:002022-05-16T01:35:57.613-07:00सदमा!<p> वो मेरी बहुत</p><p>घनिष्ठ और आत्मीय </p><p>अचानक एक दिन खो बैठी</p><p>अपने जीवन साथी को।</p><p>अवाक् और हतप्रभ खामोश हो गई।</p><p>जब पहुँची उसके सामने तो</p><p>सदमे में घिरी </p><p>उदास और बेपरवाह सी बैठी थी।</p><p>मुझे देख चहक कर बोली- </p><p>तुम्हें वो बहुत इज़्ज़त देते थे, कभी बात नहीं टाली</p><p>एक फोन किया नहीं कि पहुँच गये,</p><p>ए सुनो मुझे उनसे मिलना है,</p><p>तुम्हें मिले तो कह देना </p><p>मैंने बुलाया है।</p><p>तुम्हारी बात टालेंगे नहीं।</p><p>कहोगी न, कहोगी न!</p><p>फिर फफक फफक कर रो पड़ी,</p><p>मैं देखती रह गई,</p><p>मेरे पास उसको समेटने के सिवा कुछ न था।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-34135687622833590532022-05-08T03:43:00.003-07:002022-05-08T03:43:41.949-07:00माँ !<p> माँ </p><p>क्या </p><p>एक इंसान भर होती है</p><p>फिर क्यों लोग </p><p>सगी और सौतेली का ठप्पा लगा देते हैं।</p><p><br /></p><p>माँ </p><p>एक भाव है,</p><p>जरूरी नहीं कि उसने</p><p>हर बच्चे को जन्म दिया हो,</p><p>फिर भी संभव है </p><p>कि बहुतों को प्यार दिया हो।</p><p><br /></p><p>माँ</p><p>जो प्यार बाँटती है,</p><p>अपने बच्चों में, </p><p>पराये बच्चों में भी,</p><p>वह न देवकी होती है न यशोदा</p><p>फिर भी वह माँ होती है।</p><p><br /></p><p>माँ</p><p>ऐसी भी होती है,</p><p>समेट लेती है,</p><p>उन बच्चों को भी</p><p>जो आँखों में आँसू लिए </p><p>नजर आ जाते है।</p><p><br /></p><p>माँ</p><p>वह इंसान है </p><p>जिसे हर बच्चे में</p><p>अपना ही अंश दिखाई देता है</p><p>और प्यार तो वह अपरिमित बाँटती है।</p><p><br /></p><p>हाँ </p><p>माँ </p><p>एक भाव ही होती है,</p><p>अपने पराए से परे</p><p>आँचल पसारे , दिल खोले,</p><p>आँखों में प्यार लिए होती है।</p><p><br /></p><p>--रेखा श्रीवास्तव</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-69233250050043911682022-04-14T08:13:00.003-07:002022-04-14T08:13:44.606-07:00माँ!<p> माँ !</p><p><br /></p><p>माँ </p><p>एक भाव ,</p><p>एक चरित्र में समाया </p><p>वो अहसास है </p><p>जो उम्र , लिंग या रिश्ते का मुहताज़ नहीं होता ।</p><p>ये जन्म से नहीं ,</p><p>हृदय से जुड़ा हुआ </p><p>वो भाव है , </p><p>जो </p><p>हर किसी को नहीं मिलता ।</p><p>जन्म देकर भी कोई माँ नहीं बन पाती है,</p><p>और कोई</p><p>बिना जन्म दिये माँ बनकर </p><p>निर्जीव से शरीर में प्राण डाल देती है ।</p><p>वो बहन, भाई , या कोई अजनबी हो </p><p>अगर ममता से भरा वह दिल</p><p>छूटी हुई डोर थाम कर </p><p>प्राण फूँक देता है,</p><p>तो</p><p>ममत्व इस दुनिया में सबसे महान हैं </p><p>और </p><p>माँ तो</p><p>सबसे परे </p><p>ईश्वर के समकक्ष रखी जाती है ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-55151121646103324722022-03-13T10:03:00.000-07:002022-03-13T10:03:17.501-07:00किसको दूँ ?<p> सोचती हूँ ,</p><p>जिंदगी किसके नाम करूँ,</p><p>वे जो अकेले है,</p><p>देख रहे है आशा से</p><p>कोई तो बाँट दे सुख-दूख उनका, </p><p>कुछ पल उनको ही सौंप दूँ ।</p><p><br /></p><p>काँप रहे हैं पाँव जिनके,</p><p>लड़खड़ा रही है छाँव जिनकी</p><p>थाम लूँ बाँह उनकी</p><p>मैं बन जाती हूँ ,</p><p>शेष जीवन का सहारा</p><p>मेरे सहारे चलो ।</p><p><br /></p><p>बहुत है सम्पत्ति जिन पर</p><p>भरे है भंडार जिनके,</p><p>फौज है भीतर बाहर </p><p>बस दो पल के मुहताज हैं,</p><p>बैठ कर पास उनके</p><p>दे सकूँ कुछ पल का साथ</p><p>बाँट लूँ एकाकीपन का अहसास।</p><p><br /></p><p>सुन लूँ उन्हें कुछ</p><p>आदेश जिनके दस्तावेज थे,</p><p>पत्ता खड़कने से पहले,</p><p>लेता था इजाजत उनकी,</p><p>अब </p><p>असमर्थ होकर निराश्रित हो </p><p>जी रहे खामोशी को,</p><p>कोई नहीं अब उनका,</p><p>देख ले उनकी तरफ अपनत्व से,</p><p>किसी को नहीं फुर्सत इतनी </p><p>अपने सा समझ कर </p><p>अपना बन जाऊँ।</p><p><br /></p><p>मौन छा गया है,</p><p>छिन गई वाणी उनकी</p><p>पल भर उनके आँसुओं को पोंछ कर,</p><p>बेबसी के अंधेरे से</p><p>उबार ही लूँ तो कुछ बात बने।</p><p><br /></p><p><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-53177298844136677852021-10-31T09:37:00.000-07:002021-10-31T09:37:29.333-07:00दीपावली !<p> पाँच दिवस का पर्व मनायें </p><p>मन से सबकी कुशल मनायें।</p><p><br /></p><p>धन्वंतरि की पूजा करके हम</p><p>माँगें आरोग्य का अटल आशीष।</p><p>यम के नाम का दीप जलाकर</p><p>अकाल मृत्यु से बचें नवाओ शीष।</p><p><br /></p><p>नरक चतुर्दशी पूजो माँ काली</p><p>समुद्र मंथन से प्राप्त विभूति हैं।</p><p>अपने मन की मिटाओ कलुषता </p><p>सबको मन के प्यार से जीतो ।</p><p><br /></p><p>दीपावली का पर्व सुखद सुहाना,</p><p>हर्ष,उल्लास और उत्साह भरा हो, </p><p>जाना उस द्वार पर भी तुम आज, </p><p>जहाँ गम के तिमिर ने डाला डेरा हो।</p><p><br /></p><p>अन्नकूट औ' गोवर्धन पूजा कर ,</p><p>सुख सम्पन्नता का सब माँगें वर ।</p><p>चलो निभायें ये परम्पराएँ हम ,</p><p>छप्पन भोग बना कर घर - घर।</p><p><br /></p><p>भाई दूज की भी महिमा है भारी,</p><p>यमुना चली टीका लेकर यम द्वार।</p><p>चित्रगुप्त पूजन कर कलम उठायें</p><p> पायें लक्ष्य करके हर बाधा पार।</p><p><br /></p><p> दीपावली सबको मंगलमय हो ।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9061804611166351828.post-45992558067825892682021-09-11T21:40:00.004-07:002021-09-11T21:41:39.069-07:00आस लिए बैठे हैं !<p> वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से ,</p><p>हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं ।</p><p><br /></p><p>दौड़ नहीं पाये संग संग उसके तो पीछे रह गये ,</p><p>थाम कर बीते दिन पुराने कलैण्डर से लिए बैठे हैं ।</p><p><br /></p><p>पाँव थक गये थे दौड़ना सिखाते सिखाते उनको ,</p><p>आयेंगे वो पलट कर साथ ले जाने आस लिए बैठे हैं।</p><p><br /></p><p>हमारी तो ये धरोहर है जीवन की सुनहरे पलों की ,</p><p>आये तो जलाकर चल दिये हम राख लिए बैठे हैं ।</p><p><br /></p><p>-- रेखा</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com8