कुछ धुँधली सी
यादों पर
जब पड़ जाती है
उजली सी तस्वीरों का
चमकता हुआ सूरज।
फिर क्यों ?
वापस हम
जीने लगते हैं
अतीत के उन
पीले होते हुए पन्नों को।
कुछ मधुर
कुछ तिक्त
कुछ कटु
सब गुजरे हुए पल
फिर से जीने के लिए
उन तस्वीरों में घुस जाऊं।
उन पलों को
फिर से चुरा लाऊँ।
कैसे भी ?
बस एक बार
बच्चों का वही बचपन
वही भोलापन
फिर वापस आ जाए
कुछ दिनों के लिए सही।
दुनियां के अलग अलंग
जगहों पर
जी रहे बच्चे
एक बार फिर
एक साथ मेरे पास आ जाएँ।
निहार लूँ जी भर कर ,
दुलार दूँ जी भर कर ,
फिर और फिर
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं चाहिए।