शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

श्मशान तक !

    हर इंसान वाकिफ  है जिन्दगी की हकीकत से
        जिन्दगी के रास्ते आखिर श्मशान तक जाते हैं .

आता तो है हर इंसान इस  दुनियां एक तरह से 
जिन्दगी में अपनी फिर क्यों भटक जाते हैं।  

ऐसा नहीं कि वे वाकिफ न हो अंजाम से अपने 
फिर क्यों दौलत के लिए दलदल में फँस जाते हैं। 

रिश्तों और जज्बातों को इस तरह दुत्कार दिया 
जब याद आये अकेले में तो वे दम तोड़ जाते हैं।

गर फरिश्ते न बनें इंसान तो बने रहिये फिर भी 
इंसानों की मैयत पर ही दो अश्क गिराए जाते हैं। 

 ऐसे ही न जाने कितने श्मशान तक जाने के लिए 
आखिर में चार कन्धों के सहारे को तरस जाते हैं।

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

हाइकू

 राजनीति में
रसूख देखना है
गाड़ी को देखो
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धरा कहती
इंसान से रुक जा
अभी जीना है।
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रिश्तों में अभी
रहने दो गरमी
खून से जुड़ी ।
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सपने टूटे
टुकड़ों को सहेजा
आंसूं चू पड़े। 
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सपने मुझे 
देखने का हक था 
मर्जी उनकी। 
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बलात्कार में 
कलंक नारी पे है 
वे हैं निर्दोष। 
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नारी के लिए 
विवाह की मर्यादा 
शिरोधार्य है। 
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सात फेरे है 
सिर्फ नारी के लिए 
नर आजाद . 
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