वह बेचारी
आंसुओं के सैलाब्में
उम्र भर
डूबती-तिरती रही
साँस मिलती रही
जीने के लिए जरूरी थी।
खोजती रही
किनारा
जहाँ सुस्ता ले जी भर
रह-रह कर वही त्रासदी
पीछे लगी रहती है
वह भी
सिसक सिसक कर
जीती मरती रहती है।
अचानक एक दिन
किनारे लग गई
छोड़ दिया उसने
सब कुछ बीच में ही
पर यह क्या,
किनारे आकर उसने
तोड़ दिया दम
सैलाब से बाहर
जीना उसे आता ही कहाँ था,
प्यासी मछली सा जीवन वहाँ था
सो चल दी
पूरी दुनिया को
अलविदा करके.
मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008
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10 टिप्पणियां:
रेखा जी बहुत सुन्दर लिखा । धन्यवाद
rekhaa jee,
lagtaa hai nari man kaa sara dard udel diya apne . bahut badhiyaa likhaa apne.
मार्मिक कविता...।
सोचता हूँ:( क्या कभी हमें किसी प्रसन्न और सुखी नारी के बारे में कोई कविता पढ़ने -सुनने को मिलेगी? ...या यह जीवन यूँ ही निकल जाएगा।
रेखा जी,
भावपूर्ण रचना। सुन्दर।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman. blogspot. com
बहुत सुंदर आपका चिठ्ठा जगत में स्वागत है . मेरे ब्लॉग पर दस्तक देकर देखें अन्दर कैसे व्यंग और गीत रखे हैं
siddharth shankar ji,
jivan ki yah trasdi hai ki nari aur poorn sukhi aisa ho hi nahin sakata hai. kis drishti se dekhenge - mansik sukh shanti hi sarvopari hai. jab vah sab taraph se sukhi hoti hai to doosaron ke liye kashtkari banane lagati hai.
Ek bhaavpoorna rachanaa!
क्या बात है!. इक मर्म स्पर्शी रचना. बहुत सुंदर.
hindi seva ke bajai behater rachanayen likhiye. naye-naye shabd science adi ke talashiye. hindi ko seva nahi behater sahitya ki jaroorat hai.
-roshan premyogi
roshan.premyogi@yahoo.com
ek marmik rachana, khoobsoorat rachana,
किनारे आकर उसने
तोड़ दिया दम
सैलाब से बाहर
जीना उसे आता ही कहाँ था,
--------------------------Vishal
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