फूलों सी कोमल
रंगों सी मोहक
इन्द्रधनुष सी सजीली
बेला मोगरा सी महकती
दुलारती, इठलाती
गुडिया सी वो
है सबकी आँख का तारा
मेरी प्यारी बिटिया.
बरसाती वो प्यार
पाती वो प्यार
बस एक
हमारा घर ही तो है,
जिसमें हर आँख की किरकिरी है
क्यों वो ऐसी है?
बेटी है तो
बंद दरवाजों की दरारों से
सांस लेने का हक है उसको
जितनी गहरी वे कहें
उतनी ही सांस ले
और वो
दरवाजे खिड़कियाँ तोड़कर
मुक्त जीना चाहती है.
मैं भी चाहती हूँ
इसीलिए
इस घर में
सबसे बड़ी गुनाहगार
मैं ही हूँ.
अपना सा जीवन
उसके हिस्से में डालूँ
कभी नहीं
जननी हूँ तो
उसकी भाग्य विधाता भी बनूंगी.
वह सब दूँगी
जिसके लिए मैं तरसी हूँ
इस विशाल अन्तरिक्ष को
उसकी प्रतिभा के सूर्य से
जगमगाना है
बेटी है तो क्या?
मान उसको मेरा बढ़ाना है.
मान उसको मेरा बढ़ाना है.
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
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10 टिप्पणियां:
बेटी है तो
बंद दरवाजों की दरारों से
सांस लेने का हक है उसको
जितनी गहरी वे कहें
उतनी ही सांस ले
और वो
दरवाजे खिड़कियाँ तोड़कर
मुक्त जीना चाहती है.
मैं भी चाहती हूँ
इसीलिए
इस घर में
सबसे बड़ी गुनाहगार
मैं ही हूँ....
kisne kaha gunahgaar ? yahi thos kadam hai
रेखा जी मान आपका ही नहीं उसको अपना भी बढ़ाना है। इसलिए उसे वह आकाश और जमीन दीजिए जिसकी वो हकदार है।
बेटी है तो
बंद दरवाजों की दरारों से
सांस लेने का हक है उसको
जितनी गहरी वे कहें
उतनी ही सांस ले
और वो
दरवाजे खिड़कियाँ तोड़कर
मुक्त जीना चाहती है...
kaash hamaare samaaj ki soch mein badlaav aaye ... betiyon ko vo sabhi haq milen jo beton ko milta hain ... maarmik rachna hai ..
इस विशाल अन्तरिक्ष को
उसकी प्रतिभा के सूर्य से
जगमगाना है
बेटी है तो क्या?
मान उसको मेरा बढ़ाना है.
कितनी सुन्दर कविता है...काश हर माँ अपनी बेटी के लिए ऐसे ही चट्टान सी खड़ी हो...फिर अपने देश की हर कली मुस्कुरायेगी...खिल कर इतराएगी
बहुत शशक्त रचना...काश हर मान अपनी बेटी के प्रति ऐसे ही पक्के इरादे वाली हो...
नीरज
एक माँ अपने लिए बेशक कुछ न मांग पाए परन्तु अपनी बेटी के लिए सारे ज़माने से लड़ जाती है ..बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ..
इस विशाल अन्तरिक्ष को
उसकी प्रतिभा के सूर्य से
जगमगाना है
बेटी है तो क्या?
मान उसको मेरा बढ़ाना है.
बहुत सुन्दर प्रेरणा देती कविता। मेरी बेटियों ने भी मेरा मान बढाया है। आपकी भी जरूर बढायेंगी। शुभकामनायें
जननी हूँ तो
उसकी भाग्य विधाता भी बनूंगी.
वह सब दूँगी
जिसके लिए मैं तरसी हूँ
इस विशाल अन्तरिक्ष को
उसकी प्रतिभा के सूर्य से
जगमगाना है
बहुत सार्थक सोच....प्रेरणादायी रचना..
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
काश हर माँ अपनी बेटी के लिए ऐसे ही चट्टान सी खड़ी हो...
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