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सोमवार, 22 दिसंबर 2008

कामना!

नव वर्ष
नव मुकुलित
कलियों सा
खिलने को तैयार।
इससे पहले
विधाता तू इतना
कर दे --
सद्बुद्धि, सद्चित्त , सद्भावना
उन्हें दे दे,
जिन्हें इसकी जरूरत है।
जिससे
कोई भी दिन नव वर्ष का
रक्त रंजित न हो
मानव की मानव से ही
कोई रंजिश न हो,
भय न छलके आंखों में
मन में कोई शंकित न हो,
एक दीप
ऐसा दिखा दो
जिसके प्रकाश में
मन कोई कलुषित न हो,
नव प्रात का रवि
ऐसा उजाला करे
हर कोना सद्भाव से पूरित हो
सब चाहे, सोचें तो
बस खिलते चमन की सोचें
शान्ति, प्यार और अमन की सोचें,
पहली किरण के साथ
फूटे गीत मधुर
जीव , जगत, जगदीश्वर
सबके लिए नमन की सोचें।
नव वर्ष सबको शत शत शुभ हो।

विडंबना

आज अकेले, बीमार, बेवश
चुपचाप पड़ी पर
छत पर लटके पंखे
के हर कोने को देख रही है।
सारी बत्तियां
बुझ चुकी है कब की,
अब तो बंद हो चुकी है,
रसोई में बर्तनों की
खनक भी ,
वह भूखी
शायद कोई पूछे
खाना लाये,
पर यह क्या?
रात गहराती गई
वह भूखे पेट
करवटें बदलती रही
जिन्हें कभी
उठाकर, जगाकर खिलाया था
ख़ुद न सोकर
उनको सुलाया था
वे ख़ुद खाकर
सबको खाया समझने लगे
सब भूल गए।
वे जो भूखे
रहकर भी
उनको माफ कर गए,
एक लीक बना गए।
हम जनक जननी हैं,
क्षमा बडन को चाहिए.....
वाह री
विडम्बना
क्या सारी
मानवता
मेरे ही हिस्से में आई
ख़ुद माफ करो
दुआ दो
यह किस शास्त्र में
लिखा है।
जब वे बदल गए,
तो हम ही क्यों,
उस लीक को पीटते रहें।
बद्दुआ तो नहीं
पर अब दुआ भी तो
निकलती नहीं।
पेट की ज्वाला में
सब कुछ जल जाता है।
बस शून्य और' एक शून्य ही रह जाता है.

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

प्रार्थना जो सुन ली गई!

*मैंने भगवान् से माँगी शक्ति
उसने मुझे दी कठिनाइयाँ
हिम्मत बढ़ाने के लिए।

*मैंने भगवान् से माँगी बुद्धि
उसने मुझे दी उलझनें
सुलझाने के लिए।

*मैंने भगवान् से माँगी समृद्धि
उसने मुझे दी समझ
काम करने के लिए।

*मैंने भगवान् से माँगा प्यार
उसने मुझे दिए दुखी लोग
प्यार करने के लिए।

*मैंने भगवान् से माँगी हिम्मत
उसने मुझे दीं परेशानियाँ
उबर पाने के लिए।

*मैंने भगवान् से माँगा वरदान
उसने मुझे दिए अवसर
उन्हें पाने के लिए।

*वो मुझे नहीं मिला , जो मैंने माँगा था,
उसने मुझे वह दिया, जो मुझे चाहिए था।

***यह पंक्तियाँ मेरी बेटी ने किसी मन्दिर में देखि थीं और वहां से लाकर मुझे दी। देखिये कितनी अच्छी और अर्थपूर्ण पंक्तियाँ है। इनको आप दूसरों तक पहुंचिए। आज सोचा इनकी जगह यही सही है।