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बुधवार, 29 अप्रैल 2020

नादान!

आज भी इंसान
है कितना नादान
मौत से दो कदम खड़ा है,
फिर भी अपनी जिद पर अड़ा है ।
शेखी समझता है कानून तोड़ने में
क्या मिलता है नहीं जानता जोड़ने में।
वो रहम नहीं करेगा ,
गर लग गया गले से ,
फिर तुम कहाँ औ बाकी सब कहाँ ?
जिये हो जिनके लिए ,जीते है जो तुम्हारे लिए ,
कुछ उनकी भी सोचो ।
देखना तो दूर छूने से करेंगे इंकार,
किसी लावारिस की तरह
राख हो जाओगे।
खुद जिओ औरों को भी जीने दो
कभी खत्म होगा ये कहर
तब की देख तो लेना सहर।
नहीं तो
तस्वीरों से चिपट कर रोयेंगे अपने
हाथ में राख लिए कल के सपने ।
कदर कर लो जिंदगी की,
दुबारा नहीं मिलेगी,
जो हाथ में है सहेजो उसको,
खुद भी जिओ औरों को जीने दो ।

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

हाइकु

दिन में रात
आँधी औ बरसात
माह कौन रे।
***
दहशत में
जीवन हैं हमारे
कोरोना मारे ।
***
बंद घर में
साँस भी घुटती है
जाँ अधर में।
***
वो दिखते है
एक रोबोट जैसे
बचाये कैसे ?
***
दीप जलाये
बैठी है उसकी माँ
साँसत में जाँ।
***
वो कर्मवीर
खड़े हैं सीना तान
बचा लें जान।
***

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

कहते हैं सभी कोरोना हूँ !

कहर बन कर आया जरूर हूँ ,
विश्व में भी कहलाया क्रूर हूँ ,
जन्म दिया किसने ये प्रश्न है ?
वही जिन्हें अपने पर गुरूर है।

                               हाँ हर तरफ सबका रोना हूँ।
                               कहते हैं सभी कोरोना हूँ।

प्रकृति के नियमों को तोड़ कर ,
पर्वतों को मशीनों से  जोड़ कर ,
ध्वस्त कर दी रचना  धरा की ,
रख दिया धाराओं को मोड़ कर।

                               हाँ हर तरफ सबका रोना हूँ।
                               कहते हैं सभी कोरोना हूँ।

कुछ दिनों को बंद प्रदूषण की मार ,
शांत हो वातावरण, हो शोर की हार ,
 स्वच्छ हुआ आकाश नील वर्ण का ,
वर्षों बाद देखा है गगन धुंआ के पार।

                               हाँ हर तरफ सबका रोना हूँ।
                               कहते हैं सभी कोरोना हूँ।

मकान बन गए घर गुलजार हो ,
नन्हों को मिल गया ममता प्यार हो ,
चेहरे मुस्कराते हैं सभी के आजकल,
बंदिशें भले हो फिर भी ये बहार हो.

                               हाँ हर तरफ सबका रोना हूँ।
                               कहते हैं सभी कोरोना हूँ।