एक एक करके
चिराग घरों के
गुल क्यों हो रहे हैं?
कभी इस घर में रुदन,
कभी उस घर में चीत्कार
क्या मातम
इसी तरह से
रोज पसरता ही रहेगा.
एक दिन
सारे चिराग गुल होकर
अँधेरे में डूबा
ये गुलिश्तां
श्मशान ही बन जाएगा.
और इन बेसहारों का जीवन
घिसटेगा बिना बैसाखियों के
अरे कुछ तो करो
रोको इन पागलों को
जो इंसां की पौध
बेपनाह रौंदते जा रहे हैं.
4 टिप्पणियां:
कौन रोकेगा इन्हें? मार्मिक अभिव्यक्ति.
ओह मन द्रवित हो गया...बहुत ही मार्मिक रचना..
बहुत ही मार्मिक
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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