ओ गांधारी
अब तो जागो,
जानबूझ कर
मत बाँधो आँखों पर पट्टी,
सच को न देखने का
साहस करना होगा।
कुछ करना होगा,
सिर्फ गला फाड़कर चीखने से
आँख बंद कर चिल्लाने से
मानव नहीं बन जाते है ।
ओ गाँधारी !
अपनी आँखों की पट्टी
खोलने का
अब वक्त आ गया है।
दुःशासन को नहीं
जन्म देना अर्जुन को।
अब अनुगमन का नहीं,
अग्रगमन के लिए तैयार हो
अपने घर के लाड़लों को
किसी शकुनि के हाथ में नहीं,
अपने साथ ले आगे चलना है।
द्रौपदी की बेइज्जती नहीं,
इज़्ज़त करना सिखाना होगा।
जबान की तलवारें नहीं,
मर्यादा सिखानी होगी।
अब गांधारी नहीं
बल्कि कुंती बनना होगा।
पांडव जैसे
अपने पुत्रों को
इस देश की मिट्टी की गरिमा से
सज्ज करने के लिए,
सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे जैसा हो सकता है।
सत्ता के दीवाने या हवस का मालिकाना हक
अहम से सराबोर
बेटों की अब जरूरत नहीं है।
तो तुम भी सीखो ,
अपने वंश के नाश की त्रासदी झेली है तुमने,
अब अपने लाडलों को
खुली आँखों से पालना है,
अपनी कोख को लज्जित होने से बचाना होगा।
तभी तो भविष्य में
इस धरती पर,
और किसी महाभारत की कहानियाँ सुनने को न मिलेंगी।
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