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सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

गमज़दा घर !

 

गमज़दा घर !

उस मकान से
कभी आतीं नहीं 
ऐसी आवाजें
जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।
खामोश दर,
खामोश दीवारें, 
बंद बंद खिड़कियाँ,
ओस से तर हुई छतें
शायद रोई हैं रात भर ।
कोई  इंसान भी नहीं 
हँसता यहाँ,
मुस्कानें रख दी हैं गिरवी। 
उनके यहाँ 
खुशियाँ ने भी
न आने की कसम खाई है।
शायद इसीलिए
हर तरफ मायूसी छाई है।
 
--  रेखा श्रीवास्तव

2 टिप्‍पणियां:

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर।

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत ही सुंदर सार्थक रचना।