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सोमवार, 20 अगस्त 2012

हाइकू !

आज  की थीम है प्रकृति !



तपती धरा 
ओजोन में छेद तो 
हमने किया .
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गंगा मैली है 
गंदगी हमारी है 
पाप धोये हैं।
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बादल फटा 
पृथ्वी की तपन को 
मिटा न सका।
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कुल्हाड़ी पड़ी 
रो दिए हरे पेड़ 
वे तो खुश हैं।
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उन्नत हम 
आकाश में रहेंगे 
धरती कहाँ?
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मिले कहीं तो 
हम आकाश ले लें 
मोल कुछ हो।
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ठूंठ के नीचे 
छाँव नहीं मिलती 
संभल जाओ .
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कभी सोचा है 
ए सी में बैठ कर 
लू फेंकते हो। 
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पैसे में बेचीं 
आकाश की आजादी 
टावर रोपे। 
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घुटता दम 
जलती हुई हवा 
सांस कैसे लें ?
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4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर हाइकु

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

wah.... di!!! lagta hai ek baar mujhe bhi koshish karni padegi...:)

Sanju ने कहा…

nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... कुछ न कुछ कहते हैं सभी हाइकू ...
लाजवाब ...