सम्मान न भी दे सको
तो अपमान तो न करो,
इंसान के भावों को
आहत मत करो।
क्या हक है हमें?
किसी को लानत मलानत करने का,
हमने इससे पहले
कुछ दिया था उसको
अगर नहीं
तो फिर
आरोप -प्रत्यारोपों का भी हक नहीं।
दूसरे के घर की आग से
हाथ सेंक लेना
बहुत आसन है
जलता है अपना घर
तो पानी पानी चिल्लाते हैं .
वो तुम्हारा कोई भी न सही
किसी का पिता, भाई और बेटा
न सही
पर इंसान तो है,
वैसे हम उनके कोई नहीं
लेकिन उनके चादर के छेद
चश्मा लगा कर देखते हैं
हमें कोई हक नहीं
किसी के घर में झांकने का।
इसलिए खुद पर
संयम रखो,
अगर साक्षी हो किसी बात के
तब ही हकदार हो
अगर नहीं तो फिर
आग मत उगलो .
शांत रहो और शांति बनाये रखो।
तो अपमान तो न करो,
इंसान के भावों को
आहत मत करो।
क्या हक है हमें?
किसी को लानत मलानत करने का,
हमने इससे पहले
कुछ दिया था उसको
अगर नहीं
तो फिर
आरोप -प्रत्यारोपों का भी हक नहीं।
दूसरे के घर की आग से
हाथ सेंक लेना
बहुत आसन है
जलता है अपना घर
तो पानी पानी चिल्लाते हैं .
वो तुम्हारा कोई भी न सही
किसी का पिता, भाई और बेटा
न सही
पर इंसान तो है,
वैसे हम उनके कोई नहीं
लेकिन उनके चादर के छेद
चश्मा लगा कर देखते हैं
हमें कोई हक नहीं
किसी के घर में झांकने का।
इसलिए खुद पर
संयम रखो,
अगर साक्षी हो किसी बात के
तब ही हकदार हो
अगर नहीं तो फिर
आग मत उगलो .
शांत रहो और शांति बनाये रखो।
6 टिप्पणियां:
sach kaha
सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति!
आग मत उगलो .
शांत रहो और शांति बनाये रखो
.
सही कहा है |
बिलकुल सही कहा..
अगर साक्षी हो किसी बात के
तब ही हकदार हो
अगर नहीं तो फिर
आग मत उगलो .
शांत रहो और शांति बनाये रखो।
बिल्कुल सही कहा
sahi kaha didi ...bahut acchi baat likh di hain aapne
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